शनिवार, 1 मार्च 2025

रमजान : क्या मस्जिदों पर भी फूल बरसायेंगे योगी ?

 

देश के 22  करोड़ मुसलमानों का पवित्र त्यौहार 'रमजान ' रविवार से शुरू हो रहा है। । प्रयागराज में समाप्त हुए महाकुम्भ के बाद का ये एक बड़ा त्यौहार  है। अब सवाल ये है कि क्या उत्तर पदेश की सरकार सूबे की मस्जिदों में सरकारी हैलीकाप्टर से नमाजियों पर पुष्पवृष्टि करेगी ? पढ़ने वाले कहेंगे कि  -क्या मूर्खतापूर्ण सवाल किया है ? मस्जिदों पर भी कोई फूल बरसता है। वहां तो केवल पुलिस की लाठियां बरसाई जाती हैं। 

रमजान का महीना महाकुम्भ की तरह हालाँकि पाप धोने का मौक़ा नहीं है लेकिन इस महीने में लोग  पूरे एक महीने उपवास कर लोककल्याण के लिए दुआएं करते हैं। पवित्र कुरआन का परायण करते हैं ,तरावीह की नमाज पढ़ते हैं और अपनी औकात के हिसाब से जकात [ दान ] भी देते हैं। एतेकाफ़ करते हैं और माह के अंत में मिलजुलकर ईद मनाते हैं। यानि ये आत्मशोधन और लोककल्याण की उपासना का महीना है ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि  किसी भी सरकार के पास इस त्यौहार को मनाने   की न इच्छाशक्ति है और न खजाने में पैसा है ,न नमाजियों पर फूल बरसाने के लिए कोई हैलीकाप्टर। 

आम धारणा है कि  रमजान महीने की 23  वीं तारीख शबे कद्र है ,यानि इसी दिन कुरआन का अवतरण   हुआ। इसलिए इस महीने में कुरान  का पारायण किया जाता है ,जो अनपढ़ हैं वे कुरान सुनते हैं। रमजान के महीने में उपवास   को अरबी में सौम और फ़ारसी में रोजा कहा जाता है  जाता है। लोग फज्र की नमाज पढ़ते हैं ,सेहरी करते हैं। सूर्यास्त के बाद रोजा खोला जाता है यानि इफ्तारी की जाती है। एक जमाना था जब प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति के यहां भी रोजेदारों के लिए इफ्तार की दावतें होतीं थीं, लेकिन अब सरकार रोजा इफ्तार को पाप और तुष्टिअकरण मानती है इसलिए इस रिवायत को समाप्त कर दिया गया है। मौजूदा सरकार में तो एक भी मुसलमान मंत्री भी नहीं है जो बेचारे रोजदारों को इफ्तार की दावत दे दे। 

महाकुम्भ  में जैसे सनातनियों के पाप धुल जाते हैं वैसे ही माहे रमजान में रोजदारों के गुनाह माफ़ हो जाते हैं। रोजा   इफ्तार के लिए पकवानों की जरूरत नहीं होती,ये शृद्धा का मामला है।  अगर आपके पास कुछ नहीं है तो आप रोजेदार को एक खजूर और और  एक गिलास पानी देकर भी इफ्तारी करा सकते हैं। ये महीना मुस्तहिक़ लोगों की इमदाद करने का है। इस इमदाद को आप जकात कहें या फ़ित्रा कहें या सदक़ा कहें कोई फर्क नहीं पड़ता। रोजा मुसलमानों को 'जब्ती नफ़्स ' यानि आत्म नियंत्रण   करना सिखाता है।परहेजगारी सिखाता है  यानि ये एक तरह की हठ साधना है। 

रमजान का आगाज चंद्र   दर्शन से होता है और समापन भी चंद्र दर्शन से होता है। ठीक उसी तरह मुसलमान चण्द्रमा की प्रतीक्षा करते हैं जैसे करवा   चौथ पर सनातनी विवाहिताएं चन्द्रमा की प्रतीक्षा करती हैं।  यानि चाँद सियासित  नहीं करता । चाँद दोनों को क्या सभी को दर्शन देता है। चन्दा सबका है। चाँद मियां का भी और चंद्रशेखर का भी। सनातनियों का भी और गैर सनातनियों का भी ।  आप कह सकते हैं कि  काफिरों का भी होता है चाँद। वैसे रमज़ान इस्‍लाम कैलेंडर का नौवां महीना होता है।।  माना जाता है कि सन् 610 में लेयलत उल-कद्र के मौके पर मुहम्‍मद साहब को कुरान शरीफ के बारे में पता चला था।  यूं रंजन का मतलब प्रखर होता है। 

रोजा हिन्दुओं के अनेक कठिन व्रतों जैसा ही है।  हमारे इशाक मियाँ के अब्बू बताया करते थे कि रोज़े का मतलब यह नहीं है कि आप खाएं तो कुछ न, लेकिन खाने के बारे में सोचते रहें. रोजे के दौरान खाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।  इस्लाम के अनुसार पांच बातें करने पर रोज़ा टूटा हुआ माना जाता है. ये पांच बातें हैं- बदनामी करना, लालच करना, पीठ पीछे बुराई करना, झूठ बोलना और झूठी कसम खाना। अब्बू कि मुताबिक रोजे का मतलब बस उस अल्लाह के नाम पर भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है। इस दौरान आंख, कान और जीभ का भी रोज़ा रखा जाता है।  इस बात का मतलब यह है कि न ही तो इस दौरान कुछ बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें। रोजे का मुख्य नियम यह है कि रोजा रखने वाला मुसलमान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के दौरान कुछ भी न खाए। रोजा मन सा वाचा,कर्मणा आत्मनियंत्रण का अवसर है। काम,क्रोध,मोह और लोभ से मुक्ति का संकल्प  लेकर रोजा रहा जाता है। मै अ-स्नानी  सनातनी हूँ ,लेकिन जब -तब अपने मुस्लिम मित्रों को इफ्तार की छोटी-मोती दावत देकर थोड़ा-बहुत पुण्य हासिल करने की कोशिश करता हूँ। ऐसी कोशिशें ही सामाजिक सद्भाव कि लिए जरूरी हैं। ऐसी कोशिशें सरकारों को भी करना चाहिए ,लेकिन सरकारें तो सनातनियों की हैं  और उन्हीं  के लिए काम करतीं हैं। उनका तुष्टिकरण में नहीं सन्तुष्टिकरण में यकीन बढ़ता जा रहा है। सभी रोजेदारों को बहुत-बहुत मुबारकवाद। 

@ राकेश अचल

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