गुरुवार, 13 मार्च 2025

आओ रे ! आओ !! खेलें मसाने में होली

 


भारत में चाहे कुम्भ हो या होली उसे हमारे ज्योतिषी आजकल विशेष बना देते हैं ।  जैसे कुम्भ को 144  साल के अद्भुद संयोगों का महाकुम्भ बना दिया था  वैसे  ही होली को भी 100  साल के अद्भुद संयोगों की होली बता दिया गया है। मुझे भी लगता है कि हमारे ज्योतिषी जो कहते हैं वो साबित भी करा देते हैं। जैसे कुम्भको  महाकुम्भ बनाकर ज्योतिषियों ने आधे देश को गंगा में डुबकी लगवा दी, उसी तरह अब पूरे देश को इस बार मसान में होली खेलने के लिए तैयार कर दिया गया है। 

 हिन्दू धर्म की तरह होली भी सनातन ही है । होली की अपनी कहानी है ,अपनी किम्वदंतियां हैं। अपना रंग है ,अपना स्वाद है। अपना आनंद है। लेकिन पहली बार ये आँखें होली का स्वाद, बेस्वाद होते देख रहीं है।  पहली बार होली के रंग खतरनाक   बनाये जा रहे है।  पहली  बार होली की मस्ती से देश  की एक चौथाई आबादी को अलग करने या अलग रहने के लिए कहा जा रहा है। धर्म के ठेकेदार,सियासत  के हाथों की कठपुतली  बनकर होली को सचमुच मसान में खेलने की तैयारी कर रहे हैं। 

मसान की होली अभी तक काशी की मशहूर थी। मशहूर था होली का होली [पवित्र ] गीत। ' होली खेलें मसाने में' छन्नू लाल मिसुर या  मालिनी अवस्थी जब ये गीत गातीं हैं तो मन मछँदर हो जाता है। ये गीत भगवान शिव के साथ होली खेलने का भव्य दर्शन कराता है। लेकिन अब न जाने क्या हुआ है कि हमारी सियासत काशी के मसाने की होली ,पूरे देश में खिलवाना चाहती है। फतवे जारी कर दिए गए हैं कि होली पर विधर्मी अपने घरों से बाहर न निकलें। क्योंकि इससे होली में खलल पड़ सकती है। अरे मिया ! जब महाकुम्भ में खलल नहीं पड़ी तो होली में खलल कैसे पड़ सकती है ?लेकिन यदि सत्ता प्रतिष्ठान चाहे तो कुछ भी मुमकिन है। 

होली का संदर्भ क्या  है ,सन्देश क्या है ? ये विद्वान बता सकते हैं ।  हम जैसे कूढ़ मगज तो सिर्फ इतना जानते हैं कि होली का  एकमात्र सन्देश ये है कि- प्रेम को ,भक्ति को दुनिया की कोई आग नहीं जला सकती।' होलिका भी नहीं ,जिसे आग में सब कुछ भस्म करने का वरदान हासिल था /होलिका प्रेम और भक्ति के प्रतीक प्रह्लाद को नहीं जला पायी और खुद जलकर राख हो गयी। ख़ाक में मिल गयी। इसी तरह मेरा दृढ विश्वास है की सत्ता की होलिका सद्भाव के प्रह्लाद को जलाकर न राख कर सकती है और न खाक में मिला सकती है। भले ही सत्ता प्रतिष्ठान पूरे देश के कब्रस्तान और मस्जिदें खोद कर देख ले। 

लोगों को शायद ये पता नहीं है कि होली पर रियाया आपस में गले मिलती आयी है। आज से नहीं  बल्कि आदिकाल से यानि जब से होली मानाने के सिलसिला शुरू हुआ होगा ,तब से। इस होली को अकेले हिन्दू  नहीं मानते ।  इसमें सिख,ईसाई,मुसलमान और तो और अंग्रेज तक शामिल होते आये हैं और होते आएंगे। कोई किसी को रोक नहीं सकता,रोकता भी  नहीं है। रोकना भी नहीं चाहिए ,लेकिन जो होली खेलना नहीं चाहता उसे इसमें जबरन घसीटा भी नहीं जा सकता। घसीटना भी नहीं चाहिए।  होली यदि हिन्दुओं का त्यौहार है तो उसके लिए दूसरों को न तो विवश किया जा सकता है और न ही किसी को होली खेलने ,मनाने से रोका जा सकता है। स्कूल बंद होने से पहले बच्चों ने होली माना ली,खेल ली। वहां सियासत अपना काम नहीं कर पायी ,लेकिन सम्भल  में रंगों के बजाय खून से होली खेलने की तैयारी जरूर की गयी है खुदा न करे की सम्भल में होली बदरंग हो ,बदनाम हो। 

मैंने सात समंदर पार अमेरिका में दो-तीन बार होली मनाऐहै। वहां होली घरों में नहीं मंदिरों में जलाई जाती है और घरों में नहीं बल्कि सामूहिक रूप से सार्वजनिक बागीचों में खेली जाती है। अमेरिका में अकेले हिन्दू होली नहीं खेलता। पूरा हिंदुस्तान होली खेलता है।  होली खेलने   वाले से उसका मजहब नहीं पूछा जात।  अमरीकी भी होली खेलते है।  अपने बच्चों को होली खिलाने लाते हैं ,लेकिन यदि जिस तरह से हिन्दुस्तान में पहली बार होली खेलने कि कोशिश की जा रहीहै वैसी ही होली यदि देश के बाहर दूसरे मुल्कों में रहने वाले हिन्दुओं ने खेलना शुरू कर दी तो कबाड़ा हो जायेगा ।  भारतीयता का जनाजा उठ जाएगा। भारतीयता का मतलब ही सद्भाव है। 

हमने,आप ने इसी मुल्क में सातों जातों को होली खेलते देखा है ,लेकिन अब जान-बूझकर रंग में भंग डालने की कोशिश की जा   रही है। होली सामाजिक उत्सव  है ,इसमें  राजनीति वाले ,मजहब वाले अपनी नाक क्यों घुसा रहे हैं ?वे थोड़े ही बताएँगे की हमें होली कैसे खेलना है ? किसके साथ खेलना है ? पहले तो ऐसा नहीं होता था ।  ये सब 2014  के बाद ही क्यों शुरू हुआ है ? दुर्भाग्य ये है कि अब होली को बदरंग करने के गुप्त अभियान  में नेता,भगवाधारी संत-महंत और साहित्यकार ,पत्रकार सभी शामिल हो गए हैं और जो इस कोशिश के खिलाफ खड़े हैं उन्हें विधर्मी,तथा देशद्रोही घोषित किया जा रहा है। सब मिलकर रंगों की होली को मसान की होली   बना देने पर आमादा हैं।  अब मजा तब आये जब मुल्क का वो समाज बढ़ -चढ़कर होली खेले,जिसे इससे अलग करने की कोशिश की  जा  रही है ।विधर्मी अपनी मस्जिदों  में जुमे की नमाज भी पढ़ें और नमाज के बाद खुलकर रंगों  की होली   भी खेलें ,तभी साजिशें नाकाम हो सकतीं हैं । दुनिया के किसी भी रंग से न रोजा टूटेगा और न अपवित्र होगा। जैसे हिन्दू  ईद मिलने मुसलमानों के  यहां जाते हैं ,वैसे ही मुसलंमान  भी जुमे कि नमाज के बाद हिन्दू पड़ौसियों  के यहां होली मिलने जरूर  जाएँ । 

बहरहाल हमारे यहां तो होली जलाई भी जा रही है और खेली भी जा रही है,वो भी गलियों में ,मुहल्लों में ,बगीचों में। मसान में होली खेलने कोई नहीं गया। मसान में होली खेलने का हक केवल भगवान शिव को है और हम मनुष्य भगवान नहीं है।  भगवान शिव की तरह मसान की राख से होली नहीं खेल सकते। ये अधिकार भगवान शिव ने केवल काशी वासियों को दिया है। काशी के सांसद चाहें तो काशी के मसानों में जाकर राख की होली खेल सकते हैं,किन्तु देश के मुखिया होने के नाते उनका दायित्व है कि वे होली को बदरंग न होने दें । रोकें अपने प्यादों को ऐसा करने से।  मुझे यकीन है कि उनकी बात सुनी जाएगी ।  उनके कहने पर ये देश जब ताली और थाली बजा सकता है तो मिलजुलकर,सद्भाव से होली भी खेल सकता है।होली कोई कुम्भ स्नान नहीं है कि संगम जाकर ही किया जाये ।  होली तो 60  क्या 150  करोड़ देशवासी जहाँ हैं ,वहां खेल सकते हैं।  किन्तु साहब के  मन की बात केवल साहब  ही जानते हैं। पता नहीं वे क्या चाहते हैं ?

आप सभी को होली की अनन्य अनंत शुभकामनायें। 

@ राकेश अचल

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