देश में इन दिनों कोई समस्या नहीं है। ' मोदी राज बैठे त्रेलोका ,हर्षित भये,गए सब शोका ' वाली स्थिति है। देश में अगर कोई मसला है तो वो है गड़े हुए मुर्दे ,को अचानक बाहर निकल आये हैं। कुछ मुर्दे हंगामा मचाये हुए हैं और कुछ पंचभूत में विलीन होने के बाद भी जेरे बहस हैं। इन गड़े मुर्दों पर अभी डबल इंजन की सरकारों वाले सूबों की विधानसभाओं में बहस हो रही है और कुछ के बारे में विधानसभाओं के बाहर बहस जारी है। मुर्दे खुश हैं ,लेकिन हम जैसे अमन पसंद लोगों की नींद हराम है।
भाजपा के अखंड भारत के सपने को 1658 में ही अमली जामा पहनाने वाले मुगल सम्राट औरंगजेब का मुर्दा कब्र से बाहर निकलकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश विधानसभा में बहस करा रहा है। समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब के राज की तारीफ़ की तो भाजपा के तमाम छावा अचानक दहाड़ने लगे। सबने मिलकर अबू आजमी को विधानसभा के मौजूदा सत्र से निलंबन की मांग कर डाली और विधानसभा अध्यक्ष ने अबू आजमी को निलंबित भी कर दिया,लेकिन अबू आजमी के साथ महाराष्ट्र विकास अगाडी वाले शिवसेना [उद्धव ठाकरे का जी इससे भी नहीं जुडाया । उन्होंने आजमी की सदस्य्ता ही समाप्त करने की मान कर डाली। और तो और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो विधानसभा में ही समाजवादी पार्टी से अबू को पार्टी से निकलने की मांग करते हुए कहा की उस कमबख्त को यूपी भेज दो हम उसका इलाज कर देंगे।
देश की दो विधानसभाओं में कभी चुनाव न लड़ने वाले औरंगजेब पर गर्मागर्म बहस देख-सुनकर मजा भी आया और क्षोभ भी हुआ। मजा इसलिए आया कि हमारी विधानसभाएं असल काम छोड़कर छाया युद्ध करती नजर आ रहीं हैं और क्षोभ इसलिए हुआ कि औरंगजेब के नाम और उनके काम का जिक्र करना भी इस देश में बिना क़ानून बनाये जुर्म मान लिया गया। इस मामले में भाजपा के छावाओं से सवाल किया जा सकता है कि क्या वे पिछले दस साल से सो रहे थे ? क्या वे इससे पहले औरंगजेब को नहीं जानते थे ? और वे अब तीन सौ साल पहले जमीदोज किये जा चुके औरंगजेब का क्या बिगाड़ लेंगे ?
औरंगजेब की क्रूरता इतिहास के पन्नो में दफन हो चुकी है । हम में से किसी ने उसे देखा नहीं है, सिर्फ पढ़ा है। आने वाली पीढ़ी भी इसी तरह आज के औरंगजेबी संस्करणों के आचरण के बारे में पढ़ेगी। औरंगजेब ने जो किया उसकी सजा पायी होगी। मरे हुए आदमी को सजा नहीं दी जा सकती । और भाजपा को ये अधिकार किसने दिया है, ये भी जानना जरूरी है। औरंगजेब की करतूतों की सजा तबके सनातनी सम्राट उसे नहीं दे पाए तो आज के हिन्दू सम्राट उसे सजा देने निकल पड़े हैं। वे औरंगजेब की कब्र खोदकर फेंक देना चाहते हैं। कहाँ ले जायेंगे उसकी मिटटी को ? समंदर में फकेंगे या हवा में उड़ाएंगे ?
भाजपाई हमारे अपने भाई हैं लेकिन वे हकीकत को तस्लीम नहीं करना चाहते। उन्हें तो एक ही धुन सवार है कि भारत को कांग्रेस विहीन और मुसलमान विहीन करो। ये तब तक मुमकिन नहीं है जब तक कि इस देश का संविधान न बदला जाये और इस देश के दो टुकड़े फिर से न किये जाएँ। आखिर 20 करोड़ से ज्यादा मुसलमानों को आप कहाँ ले जाइएगा ? हालाँकि ये सबके सब औरंगजेब नहीं हैं । उसके खानदान के भी नहीं हैं। ये औरंगजेब का दिया हुआ भी नहीं खाते। ये खुद मेहनत -मजदूरी करते हैं तब खाते हैं।
मेरी फ़िक्र में अबू-आजमी नहीं है। उनकी जान तो खतरे में है ही ,लेकिन उन बच्चों का क्या होगा जिन्हें आज भी इतिहास में औरंगजेब पढ़ाया जाता है। क्या भाजपा सरकार ने इतिहास की किताबों से औरंगजेब का नामो-निशान मिटा दिया है। क्या सरकार ने औरंगजेब का और उसके राज का जिक्र करना राष्ट्रद्रोह का अपराध बना दिया है ? शायद नहीं किया है ऐसा। हाँ ऐसा करने की कोशिश जरूर की जा सकती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरीके से विधानसभा में दुसरे सूबे कि एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि का इलाज करने की बात कहते दिखाई देते हैं उसे देखकर जरूर लगता है कि अब इस देश में क़ानून का नहीं बल्कि नए औरंगजेबों का राज आ गया है।
सवाल फिर भी टेसू की तरह अपनी जगह अड़ा, खड़ा हुआ है। क्या औरंगजेब ,क्रूर औरंगजेब ,सनातन विरोधी औरंगजेब इस देश से सनातन को खत्म कर पाया? क्या संभाजी राव के साथ पाश्विकता का व्यवहार करने के बाद भी देश में औरंगजेब की प्रतिमाएं लगाईं गयीं ? नहीं लगाई गयीं ,क्योंकि औरंगजेब आज के युग का न नायक है और न खलनायक। वो इतिहास बन चुका है और इतिहास को गरियाकर आज की सियासत नहीं की जा सकती। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि ऐसा ही हो रहा है। मैंने तो सुझाव दिया था कि औरंगजेब से छुटकारा पाना है तो उसकी कब्र को खुदवाकर पाकिस्तान को उपहार में दे देना चाहिए । मुसलमानों से मुक्ति चाहिए तो सबको सरकारी खर्चे पर अमेरिका की नागरिकता दिला देना चाहिए , न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। औरंगजेब ही क्यों रसखान को और उन अमीर खुसरो को भी प्रतिबंधित कर देना चाहिए जहाँ पिछले दिनों माननीय प्रधानमंत्री जी गए थे।
मुझे लगता है कि संतन संग बैठ -बैठ लोक-लाज तो खो ही चुकी है ,अब विष बेल भी फ़ैल चुकी है। ये विष बेल अब ज़िंदा के साथ मुर्दों को भी समूल नष्ट कर देना चाहती है। अरे भाई समझो औरंगजेब कोई ओसामा बिन लादेन नहीं था। औरंगजेब इसी मुल्क का बादशाह था जिसने पचास साल इस मुल्क पर राज किया।तब किया जब योगी आदित्यनाथ कि पुरखे इस देश में माला जपा करते थे लेकिन वे औरंगजेब से छावा की तरह टकराये नहीं। भैंसे ही चराते रहे। आज भी बहुत से लोगों का सपना मुल्क पर पचास साल राज करने का है ,लेकिन वे ऐसा कर नहीं पा रहे। न जवाहरलाल नेहरू कर पाए, न इंदिरा गाँधी कर पायीं और न नरेंद्र मोदी ही कर पाएंगे। ऊपर वाला सबको औरंगजेब नहीं बना सकता। एक तो गलती से बना था जो अपनी मौत के तीन सौ साल बाद भी हंगामा मचाये हुए है।
एक गड़ा मुर्दा पूर्व कांग्रेसी मणिशंकर ने उखाड़ा है। वे कहते हैं कि कांग्रेस ने दो बार केम्ब्रिज में फेल हुए राजीव गाँधी को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। ये हकीकत भी हो सकती है ,लेकिन सवाल ये है कि मणिशंकर को ये राज उजागर करने का साहस तब क्यों नहीं हुआ जब राजीव गाँधी जीवित थे। ! मरे हुए आदमी की निंदा करना भी ठीक वैसा ही है जैसा मरे हुए औरंगजेब को गालियां देना। लेकिन क्या करें रोग तो रोग है। याद कीजिये की ये वही मणिशंकर हैं जो हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को नीच कह चुके है। मुझे उनकी जबान भू उतनी ही काली लगती है जितनी की योगी आदित्यनाथ की। आपकी आप जानें।
@ राकेश अचल
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