मैं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मुंह में घी-शक्कर भर देना चाहता हूँ ,क्योंकि उन्होंने संसद में अहम घोषणा करते हुए कहा कि 31 मार्च 2026 से पहले देश के सभी हिस्सों से नक्सलवाद पूरी तरह खत्म हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने का संकल्प लिया है। 375 दिन में नक्सली खत्म, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की इस गारंटी को पूरा करने में सीआरपीएफ, डीआरजी, एसटीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी के जवान जुट गए हैं।गूगल की परिभाषा के मुताबिक नक्सलवाद साम्यवादी क्रान्तिकारियों के उस आन्दोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ।
सब जानते हैं कि नक्सलवाद से अकेले छत्तीसगढ़ ही नहीं अपितु ओडिशा,महाराष्ट्र और झारखण्ड भी बुरी तरह प्रभावित रहा है। चूंकि ये एक उग्र संगठित आंदोलन है इसलिए इसके समर्थक भी हैं और ये विचार जंगलों से चलकर शहरों तक आ चुका है इसीलिए शहरों में रहकर काम करने वाले नक्सलियों को ' अर्बन नक्सली ' कहा जाने लगा है ,हालाँकि ये एक गलत परिभाषा है। क्योंकि शहरी नक्सलियों के पास बंदूकें नहीं किताबें और बुद्धिबल होता है।
बहरहाल देश को नक्सलियों से मुक्ति दिलाने की बात हो रही है । देश में यदि सरकार चाहे तो कोई भी वाद समाप्त किया जा सकता है ,वो भी बिना बन्दूक के। लेकिन हर सरकार नक्सलवाद से बन्दूक से निबटती आयी है। नकस्लवाद के खिलाफ लड़ते हुए सरकारों ने अपने तमाम अर्धसैन्य बल को खपाया ह। बड़ी तादाद में हमारे जवान मारे गए हैं ,नक्सल विरोधी अभियान में जितने नक्सली मारे गए उससे ज्यादा वे आदिवासी मारे गए जो एक तरफ नक्सलियों से परेशान होते हैं और दूसरी तरफ पुलिस से। नक्सलियों के नाम पर निर्दोष आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ों में मरने की सैकड़ों वारदातें देश में हो चुकी हैं।
सवाल ये है कि क्या सचमुच नक्सलवाद समाप्त हो जायेगा । यदि सरकारी दावों को सही माना जाये तो गृह मंत्री की इस मुहिम का असर दिखने लगा है। घने जंगल में और नक्सलियों के गढ़ में पहुंचकर सीआरपीएफ व दूसरे बलों के जवान 48 घंटे में 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित कर रहे हैं। अब इसी एफओबी के चक्रव्यूह में फंसकर नक्सली मारे जा रहे हैं। सुरक्षा बलों ने ऐसा जाल बिछाया है कि जिसमें नक्सलियों के पास दो ही विकल्प बचते हैं। एक, वे सरेंडर कर दें और दूसरा, सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में गोली खाने के लिए तैयार रहें।
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक नक्सलियों के गढ़ में अभी तक 290 से ज्यादा कैंप स्थापित किए जा चुके हैं। 2024 में 58 कैंप स्थापित हुए थे। इस वर्ष 88 कैंप यानी एफओबी स्थापित किए जाने के प्रस्ताव पर काम शुरु हो चुका है। ये कैंप नक्सल के किले को ढहाने में आखिरी किल साबित हो रहे हैं। जिस तेजी से 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित हो रहे हैं, उससे यह बात साफ है कि तय अवधि में नक्सलवाद को खत्म कर दिया जाएगा। सुरक्षा बल, नक्सलियों के गढ़ में जाकर उन्हें ललकार रहे हैं।
इस साल जनवरी में ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर क्षेत्र, गरियाबंद में ऑपरेशन ग्रुप ई30, सीआरपीएफ कोबरा 207, सीआरपीएफ 65 एवं 211 बटालियन और एसओजी (स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप) की संयुक्त पार्टी के साथ हुई एक बड़ी मुठभेड़ में 16 नक्सली मारे गए थे। भारी संख्या में हथियार और गोला बारूद बरामद हुआ। उस ऑपरेशन में एक करोड़ रुपये का इनामी नक्सली जयराम चलपती भी ढेर हुआ था। फरवरी में बीजापुर के नेशनल पार्क इलाके में हुई मुठभेड़ में 29 नक्सली मारे गए थे।नक्सलियों के हमलों में भी बड़ी संख्या में नागरिक और पुलिस तथा अर्धसैन्य बल के जवान भी मारे जाते रहे हैं।
एक जमाने में मध्य्प्रदेश और बिहार में डाकुओं का आतंक भी ठीक वैसा ही था जैसा इन राज्यों में डकैतों का था । मप्र में डकैत उन्मूलन २००६ में पूरा हो गया । अब चम्ब्ल के बीहड़ सूने पड़े हैं। चंबल में आखरी सूचीबद्ध डाको गिरोह जे जे उर्फ़ जगजीवन परिहार का मारा गया था अब पुलिस रिकार्ड में सूचीबद्ध गिरोह हैं लेकिन बराये नाम। डाकुओं की तरह नक्सलियों का खतम आसान नहीं है क्योंकि नक्सली एक राजनीतिक विचारधारा से जुड़े हैं। डाकुओं की कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं थी इसलिए उनका खात्मा आसान रहा है। नक्सलियों के साथ ऐसा नहीं है। लेकिन यदि सरकार चाहे तो नक्सल समस्या का हल हो सकता है। लेकिन देश के वनवासी इलाकों के लिए जिस तरह की नीतियां सरकार बनाती है उनसे नक्सलवाद का सामना करना आसान नहीं है ।यदि होता तो नक्सलवाद अब तक समाप्त हो चुका होता।
आपको बता दें कि नक्सलियों से निबटने के लिए हर सरकार ने काम किया फिर चाहे वो कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की या वामपंथियों की सरकार। सबने नक्सल्वाद को बन्दूक से समाप्त करने की कोशिश की। मैंने अपने छात्र जीवन में पढ़ा था कि नक्सलियों के खिलाफ सबसे बड़ा अभियान स्टीपेलचेस अभियान था वर्ष 1971 में चलाया गए इस इस अभियान में भारतीय सेना तथा राज्य पुलिस ने भाग लिया था। अभियान के दौरान लगभग 20,000 नक्सली मारे गए थे।लेकिन इस महा अभियान के बाद भी नक्सलवाद समूल समाप्त नहीं हुआ। दूसरा बड़ा अभियान वर्ष 2009 में ग्रीनहंट के नाम से चलाया गया। । इस अभियान में पैरामिलेट्री बल तथा राष्ट्र पुलिस ने भाग लिया। यह अभियान छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र में चलाया गया। कोई सात साल पहले 3 जून, 2017 को छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा जिले में सुरक्षा बलों द्वारा अब तक के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियान ‘प्रहार’ को प्रारंभ किया गया। किया गया।एक जमाने में हमारे मित्र और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी केएस शर्मा ने भी इस अभियान को गांधीवादी तरिके से समाप्त करने की कोशिश की थी लेकिन उसे सरकारों का ज्यादा समर्थन नहीं मिला।
बहरहाल नक्सलवाद के खिलाफ जंगलों से लेकर शहरों तक में अभियान जारी है। अब देखना है की भाजपा इस मामले में कितनी कामयाब होती है।
@ राकेश अचल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें