ये अच्छी खबर है या बुरी ये कहना कठिन है ,लेकिन एक बात साफ़ है कि बैशाखियों पर चलने वाले देश के सत्ता प्रतिष्ठान का दुस्साहस लगातार बढ़ता जा रहा है। अब सत्ता प्रतिष्ठान का मकसद येन-केन लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और उनकी माँ श्रीमती सोनिया गांधी को जेल भेजना है। माँ-बेटे को जेल जाने से अब भगवान भी शायद ही बचा पाए ,क्योंकि अब अदाबत अपने चरम पर है।
नेशनल हेराल्ड मामले में गांधी परिवार के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने के बाद अब गेंद अदालत के पाले में है। अदालत किसी पर मेहरबान होती है और किसी पर नहीं। हालाँकि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद श्रीमती सोनिया गाँधी और राहुल गांधी की दोबारा गिरफ्तारी आसान नहीं है क्योंकि दोनों पहले से जमानत पर हैं और अब जब तक कि अदालत कोई फैसला नहीं सुना देती तब तक दोबारा गिरफ्तारी नामुमकिन है। मुमकिन है की सत्ता प्रतिष्ठान ने इस मामले में भी कोई कैलेंडर तय कर रखा हो कि कब फैसला आये और कब दोनों को जेल यात्रा पर भेजा जाये ?
पूरे देश को पता है कि ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय इन दिनों सत्ता प्रतिष्ठान के जमूरे की तरह काम कर रहा है। नेशनल हेराल्ड केस में प्रवर्तन निदेशालयने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कई नेताओं के खिलाफ चार्जशीट में ईडी ने आरोपियों पर 988 करोड़ रुपये के मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया है।कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और व्यापारी राबर्ट वाड्रा के खिलाफ गुरुग्राम लैंड डील केस में बुधवार को दूसरी बार पूछताछ हो रही है। पिछले दो दिनों में ये कांग्रेस के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों की दूसरी बड़ी कार्रवाई है। सत्ता प्रतिष्ठान की इस कार्रवाई के खिलाफ कांग्रेस ने देश भर में प्रदर्शन किये हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि इनका कोई असर सरकार या अदालत पर पड़ने वाला है ,क्योंकि सत्ता प्रतिष्ठान और प्रवर्तन निदेशालय के साथ ही माननीय अदालत का रुख साफ़ है।
मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान ने गांधी परिवार को नेस्तनाबूद करने के लिए पिछले एक दशक में अपने सभी घोड़े खोल लिए हैं किन्तु उसे अभी तक कामयाबी नहीं मिली। विपक्ष के नेता राहुल गांधी की लोकसभा से सदस्य्ता छीनी गयी किन्तु माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उसे बहाल कर दिया। राहुल से उनका सरकारी बँगला खाली करा लिया गया। राहुल न डरे और न झुके। उलटे पिछले आम चुनाव में नयी ऊर्जा के साथ अपनी बहन प्रियंका के साथ लोकसभा में वापस लौटे। राहुल ने पिछले दिनों हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव भी हारे किन्तु हिम्मत नहीं हारी और वे कांग्रेस का अधिवेशन करने सत्ताप्रतिष्ठान के नाभि केंद्र गुजरात में जा पहुंचे। सत्ता प्रतिष्ठान को ये सब नागवार गुजर रहा है। परिणाम स्वरूप सत्ता प्रतिष्ठान की और से गांधी परिवार पर आक्रमण और तेज हो गया है।
आने वाले दिनों में कौन जेल जाए और कौन न जाये इससे हमारा कोई ताल्लुक नहींहैं। हमारी चिंता तो सियासत में बढ़ती अदावत को लेकर है। जिनके प्रारब्ध में जेल यात्रा होती है ,वे जेल जाते ही हैं और गांधी परिवार तो सनातन जेल यात्री है लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े नेताओं को जेल यात्रा का कोई ख़ास अनुभव नहीं है। वे आपातकाल को छोड़ कभी जेल नहीं गए। जो दुर्भाग्य से जेल गए वे भी माफियां मांगकर जेल से बाहर आ गये । किसी ने जेल में रहकर अपनी जवानी बर्बाद नहीं की । किसी ने जेल में रहकर न स्वाध्याय किया और न कोई किताब लिखी। बहरहाल मामला राहुल,सोनिया,और रावर्ट वाड्रा का है। इनकी कुंडली में जेल यात्रा का योग होगा तो कोई ताकत रोक नहीं सकती और नहीं तो सत्ता प्रतिष्ठान कितनी भी कोशिश कर ले उसे कामयाबी नहीं मिलने वाली।
देश की राजनीति में वर्ष 2014 के बाद जो तब्दीली आयी है उसमें सबसे प्रमुख बात ये हैकि अपने विरोधियों को किसी न किसी तरह या तो झुका लिया जाये और कोई न झुके तो उसे तोड़ दिया जाये। सत्ता प्रतिष्ठान के आगे झुकने वालों और टूटने वालों की फेहरिश्त बहुत लम्बी है। टीडीपी और जेडीयू जैसे दल तो झुककर सत्ता प्रतिष्ठान की बैशाखी ही बन चुके हैं। बहन मायावती ,भाई अरविंद केजरीवाल हों या नवीन पटनायक तोड़े जा चुके हैं ,लेकिन बहुत से ऐसे हैं जो सत्ता प्रतिष्ठान से लगातार जूझ रहे हैं, उसे चुनौती दे रहे हैं। गांधी परिवार इस काम में सबसे आगे है । उनके पीछे समाजवादी अखिलेश यादव हैं,राजद के तेजस्वी यादव है। बंगाल की ममता बनर्जी हैं,झारखण्ड के हेमंत सोरेन हैं। दक्षिण के स्टालिन हैं। सत्ता प्रतिष्ठान की तमाम आसमानी-सुल्तानी ताकतें इन तमाम नेताओं को न तोड़ पायी हैं और न झुका पायीं है। बावजूद इसके सत्ता प्रतिष्ठान की कोशिशें जारी हैं ,हरि अनंत ,हरि कथा अनंता की तरह।
कितनी अच्छी बात है कि हमारा देश अमेरिका के टेरिफ वार यानी प्रहार से उतना आक्रान्त नहीं है जितना कि गांधी परिवार से आक्रान्त है । ममता,अखिलेश,तेजस्वी और सोरेन से आतंकित है। क्योंकि ये सब देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने में सबसे बड़ी बाधा है। ये सब मिलकर धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते रहते हैं। ऐसे में इन्हें कैसे बर्दास्त किया जा सकता है ? सत्ता प्रतिष्ठान के ओझाओं ने अभी बिच्छुओं को पकड़ने का मन्त्र सीखा है लेकिन हाथ साँपों के बिल में डाल रहे हैं। आप हंस रहे होंगे कि मैं सत्ता प्रतिष्ठान के विरोधियों को बिच्छू और सांप कह रहा हूँ ,लेकिन ये एक कहावत है। मैं न सत्ता प्रतिष्ठान के नेताओं को सांप-बिच्छू कहता हूँ और न किसी दूसरे को ,हालाँकि तमाम ऐसे हैं जो आकंठ जहर से भरे हुए हैं।
अब इस देश की दशा और दिशा देश की अदालतों को तय करना है। वे जो फैसला देंगी उसी से इस देश की भावी राजनीति की दशा और दिशा तय होगी । फिर चाहे मामला वक्फ बोर्ड कि नए कानून का हो या गांधी परिवार के खिलाफ 'मनी लांड्रिंग' का।देश की अदालतें अभी संयोग से पूरी तरह भगवा रंग में नहीं रंगीं है। उनमें आज भी अदालतों में तर्क की ,दलील की ,बहस की गुंजाइश बाक़ी है। ये गुंजाइशें ही एक उम्मीद बांधती हैं ,अन्यथा अब लोकशाही को तानाशाही में तब्दील करने किदिशा में देश बहुत आगे बढ़ चुका है। लेकिन हम तो उनमें से हैं जो ये मानते हैं की
-को कहि तर्क बढ़ावहि साखा ,होइए वही जो राम रचि रखा।
राम जी ने क्या रच कर रखा है राम जी ही जानें।हम तो इतना जानते हैं कि हमारा सत्ता प्रतिष्ठान परम दुस्साहसी है। वो अपने विरोधियों को नेस्तनाबूद करने कि लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। यानि सत्ता में बने रहने कि लिए हम कुछभी करेगा।
@ राकेश अचल
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