देश के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनकड़ को भड़कता देख कभी-कभी मेरा मन भी भड़कने का करता है ,लेकिन सवाल ये है कि मैं आखिर भड़कूं तो किसके ऊपर भड़कूं ? संविधान ने भड़कने का अधिकार सभी को दिया है ,इसीलिए धनकड़ साहब भी भड़क रहे हैं और ममता बनर्जी भी। योगी आदित्यनाथ भी भड़क रहे हैं और तमाम दूसरे लोग भी। अब आप सोचिये कि यदि संविधान ने आम आदमी को भड़कने का अधिकार न दिया होता तो क्या धनकड़ साहब देश की सबसे बड़ी अदालत के किसी फैसले पर भड़क सकते थे ?
धनकड़ साहब उप राष्ट्रपति बनने से पहले बंगाल के राज्यपाल थे । उन्होंने भड़कना तभी से सीखा। वे जब बंगाल में राज्यपाल थे तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर दिन-रात भड़का करते थे । उन्हें लगता था कि राज्यपाल का काम केवल और केवल राज्य की सरकार पर भड़कना होता है। धनकड़ साहब हालाँकि वकील हैं, उन्होंने क़ानून पढ़ा है किन्तु जब वे कुर्सी पर होते हैं तो क़ानून-वानून भूल जाते हैं। उप राजयपाल के रूप में भी और राज्य सभा के सभापति के रूप में भी उन्हें भड़कने के अलावा और कुछ याद नहीं रहता। वे विपक्ष कि ऊपर लगातार बरसते हैं बेमौसम बरसात की तरह।
धनकड़ साहबआजकल सुप्रीम कोर्ट पर भड़क रहे हैं। संविधान पर भड़क रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय किये जाने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भड़क गए है। उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं रख सकते, जहां अदालतें भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें. उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत मिले कोर्ट को विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। धनकड़ साहब भूल जाते हैं की यदि हमारे संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को कुछ न्यूक्लियर मिसाइल न दिए होते तो ये देश कब का हिन्दू राष्ट्र बन गया होता।
कभी-कभी मुझे लगता है कि इस देश में संविधान को हमारे नेता एक कमसिन लड़की से ज्यादा नहीं समझते और जैसे ही उन्हें मौक़ा मिलता है वे इसे छेड़ बैठते हैं। संविधान से छेड़छाड़ इसके बनने से लेकर आजतक जारी है और जब भी किसी दल को अखंड या प्रचंड बहुमत मिलेगा संविधना के साथ छेड़छाड़ की जाएगी। अब तक संविधान से छेड़छाड़ की कोई 106 घटनाएं हो चुकी है। कानून की शब्दावली में संविधान से छेड़छाड़ को 'संशोधन' कहा जाता है। कांग्रेस ने चूंकि देश पर सबसे ज्यादा समय तक राज किया है इसलिए संविधान से छेड़छाड़ की वारदातें सबसे ज्यादा कांग्रेस के समय में हुई हैं। भाजपा को अभी सत्ता में आये ग्यारहवां साल है इसलिए उसने संविधान के साथ छेड़छाड़ में अभी कांग्रेस का कीर्तिमान तोड़ नहीं पाया है ,हालाँकि भाजपा ने संविधान के साथ सबसे बड़ी छेड़छाड़ अनुच्छेद 370 को हटाकर की है।
आप अन्यथा न लें तो हकीकत ये है कि संविधान कलिकाल में एक द्रोपदी है। ऐसी निरीह द्रोपदी का चीरहरण करने का दुस्साहस कोई भी कर लेता है। जरूरत सिर्फ हाथ में सत्ता और सत्ता में भी अखंड,प्रचंड बहुमत का होना है। देश का सुप्रीम कोर्ट जब तब संविधान की द्रोपदी का चीरहरण रोकने के लिए कृष्ण की भूमिका में आता है तो धनकड़ जैसी पुण्य आत्माएं सुप्रीम कोर्ट पर भड़क उठतीं हैं, लेकिन वे उस समय शांत रहतीं हैं जब सुप्रीम कोर्ट सत्ता प्रतिष्ठान के मन माफिक फैसले करता है या निर्देश देता है।
जहाँ तक मेरा ज्ञान है उसके मुताबिक धनकड़ साहब को सुप्रीम कोर्ट पर भड़कने का कोई नैतिक अधिकार है नहीं। वे जिस पद पर बैठे हैं उसकी मर्यादा है। उन्हें अपने पूर्ववर्ती उप राष्ट्रपतियों से इस मर्यादा का पाठ सीखना चाहिए ,लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे। ,क्योंकि धनकड़ साहब अपने आपको भाजपा का देवतुल्य कार्यकर्ता जो मानते हैं [जबकि वे हैं नहीं ] धनकड़ साहब कभी आरएसएस की शाखा में प्रशिक्षण लेने नहीं गये । भाजपा में शामिल होने से पहले उन्होंने घाट-घाट का पानी पिया है ,किन्तु आज वे भाजपा के सबसे निष्ठावान कार्यकर्ता है। कोर्ट हो या कोई और जैसे ही भाजपा के खिलाफ कोई टिपण्णी करता है सबसे पहले उदरशूल धनकड़ साहब के पेट में होता है । मुमकिन है कि धनकड़ साहब आजकल में ही सुप्रीम कोर्ट को नए वक्फ क़ानून पर दिए जाने वाले फैसले के लिए भी कोसने लगें।
सुप्रीम कोर्ट पर भड़कने वाले धनकड़ साहब देश को बता रहे हैं कि "भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं. हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। "धनकड़ साहब भूल जाते हैं कि राष्ट्रपति का पद सचमुच बहुत ऊंचा है किन्तु उसे सचमुच इतना छोटा कर दिया गया है ,क्योंकि राष्ट्रपति अब देश के प्रधानमंत्री को केवल दही- मिश्री खिलाने के अलावा कोई काम नहीं करता/करती है ,संविधान की रक्षा,संरक्षण या बचाव नहीं। राष्ट्रपति ने अपनी भूमिका खुद ही बदल ली है।
बहरहाल मैं माननीय धनकड़ साहब के लिए प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर उन्हें पल-पल होने वाले उदरशूल से मुक्ति दिलाये। धनकड़ साहब उदरशूल से पीड़ित अकेले व्यक्ति नहीं हैं। बहुत से लोग हैं उनकी तरह। लेकिन निसे उदरशूल होना चाहिए वो कभी अपना मुंह नहीं खोलता । न मणिपुर पर ,न बंगाल पर ,न अमेरिका पर ,न चीन पर। उसने बोलना छोड़ ही दिया है जैसे /वो केवल अपने मन की करता है या फिर मन की बात करता है। इस प्रवृत्ति को देशज भाषा में मनमानी भी कहते हैं।
@ राकेश अचल
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