हमने कांग्रेस को बनते नहीं देखा । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को बनते नहीं देखा । जनसंघ भी हमारे धराधाम पर आने से पहले बन गया था ,लेकिन हमने भाजपा को बनते और युवा होते देखा है । हम भाजपा की चाल,चरित्र और चेहरे से भी भलीभांति वाकिफ हैं और अब हम भाजपा को राजनीति की लंका जीतने के लिए लगातार आगे बढ़ते हुए देख रहे हैं। मजे की बात ये है कि भाजपा ही राम है और भाजपा ही रावण। उसका युद्ध अपने आप से है।
आइये आपको भाजपा की राम-खानी सुनाता हूँ। देश में 1975 में लगे आपातकाल के हटने के बाद एकजुट हुए विपक्ष में यदि जनसंघ की दोहरी सदस्य्ता का मुद्दा जन्म न लेता तो शायद भाजपा का जन्म होता ही नहीं। लेकिन जो होना होता है ,वो होकर रहता है।मेरे जन्म से आठ साल पहले बने जनसंघ का नया अवतार थी भाजपा। भाजपा हालाँकि जनता पार्टी का प्रतिउत्पाद है लेकिन है जनसंघ ही। जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे। वे कैसे थे मुझे नहीं पता ,किन्तु मुझे पता है कि वर्ष 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनसंघ का उस समय गठित जनता पार्टी में विलय हो गया था । आपातकाल हटने कि बाद सन 1977 के आम चुनावों में इसी जनता पार्टी ने कांग्रेस को सत्ताच्युत किया था। जनसंघ के तेज़ाब ने 1980 में जनतापार्टी को जलाकर भस्म कर दिया। तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद 1980 में जनता पार्टी विघटित हो गई।
देश की राजसत्ता में अकेले काबिज होने का सपना देखने वाले पुराने जनसंघियों ने मिलकर 6 अप्रैल 1980 को जनसंघ के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी का गठन कर लिया । इसकी नीव में अटलबिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के अलावा उनकी पीढ़ी के तमाम पुराने जनसंघी थे। भाजपा ने 1984 के आम चुनावों में पहली बार हिस्सा लिय। भाजपा को कुल दो सीटें मिलीं। मुमकिन था की भाजपा को कुछ ज्यादा सीटें मिल जातीं किन्तु 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण कांग्रेस के पक्ष में जो सहानुभूति की लहर चली उसने सभी राजनीतिक दलों की हवा खराब कर दी थी।
भाजपा ने सत्ता में आने के लिए पहली बार राम नाम का सहारा लिया और राम जन्मभूमि आंदोलन को चुनावी मुद्दा बनाया । ये मुद्दा भाजपा को फल गया। राम नाम ने भाजपा को संजीवनी दे दी। भाजपा कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये 1996 में संसद में सबसे बड़े दल के रूप में नमूदार हुई । भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो 13,लेकिन ये सरकार कुल दिन चली।आप कह सकते हैं कि भाजपा की पहली सरकार की भ्रूण हत्या हो गयी। आज की भाषा में भाजपा की प्रथम सत्ता का ' मिसकैरेज' हो गया। भाजपा को बहुत जल्द समझ में आ गया कि देश की राजसत्ता पर कब्जा करना उसके अकेले के बूते की बात नहीं है। इसके लिए गठबंधन आवश्यक है।
देश में 1998 में आम चुनावों के बाद भाजपा ने भानुमति का कुनवा जोड़क्सर जो गठबंधन बनाया उसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) नाम दिया गया। गठबंधन का प्रयोग कामयाब हुआ और एक बार फिर श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी जो सिर्फ एक वर्ष चली। अगले आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी।लेकिन पंडित अटल बिहारी बाजपेयी का तिलिस्म बहुत जल्द टूट भी गया और 2004 के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को पूरे एक दशक तक सत्ता का वनवास भोगना पड़ा ।
भाजपा ने इस एक दशक तक संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई और 2014 के आम चुनावों में भाजपा ने बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को हटाकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना पोस्टर वाय बनाया। देश की जनता को रामराज का नहीं अच्छे दिनों का नारा दिया। ये नारा असर कर गया और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा प्रचंड बहुमत से जीतकर सत्ता में वापस आगयी । आगे की रामकहानी आप सब जानते हैं। भाजपा अपने हिंदुत्व के कार्ड को खेलते हुए आज भारतीय जनता पार्टी देश के 29 राज्यों में से 19 राज्यों में अकेले या अपने सहयोगियों के साथ सरकार चला रही है। हालाँकि 2025 तक भाजपा की अपनी ताकत संसद में क्षीण हुयी है लेकिन उसके इरादे अभी भी मजबूत हैं। भाजपा अब 2047 तक सत्ता नहीं छोड़ना चाहती। इसके लिए भाजपा कुछभी दांव पर लगाने कि लिए कमर कसे है।
भाजपा के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री सत्ता की लंका जीतने के लिए भारत के पहले वर्टिकल लिफ्ट समुद्री पुल-नए पंबन रेल पुल का उद्घाटन कर चुके है। राम ने लंका जीतने के लिए नल-नील द्वारा बनाये पुल का उद्घाटन किया था। इस पुल को पार करने से क्या भाजपा सत्ता की वैतरणी पार करते हुए अपनी कल्पना की सोने की लंका जीत पाएगी या नहीं ये आने वाले दिन बताएँगे,क्योंकि हमारे पुरखे श्री नरेश सक्सेना कहते हैं कि -
'पुल पार करने से
पुल पार होता है
नदी पार नहीं होती
नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना
नदी में धँसे बिना
पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता
नदी में धँसे बिना
पुल पार करने से
पुल पार नहीं होता
सिर्फ़ लोहा-लंगड़ पार होता है
कुछ भी नहीं होता पार
नदी में धँसे बिना
न पुल पार होता है
न नदी पार होती है।
भाजपा ने नरेश सक्सैना की ये कविता पढ़ी है या नहीं मुझे नहीं पता किन्तु लगता है कि अब भाजपा नदी पार करने के फेर में देश को आकंठ साम्प्रदायिकता में डुबो देना चाहती है। भाजपा के देवतुल्य कार्यकर्ताओं को स्थापना दिवस पर शुभकामनाएं।
@ राकेश अचल
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