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बुधवार, 26 मार्च 2025

मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना जमीनी स्तर पर हो रही चुनावी जुमला साबित?

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। यह योजना युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन अब यह जमीनी स्तर पर चुनावी जुमला साबित हो रही है।

वर्ष 2023 में ऊर्जा विभाग में चयनित हुए मध्य प्रदेश के युवाओं को अभी तक नियमित रोजगार नहीं मिला है। इसके अलावा, प्रशिक्षण पूर्ण होने के सात महीने बाद भी उन्हें प्रशिक्षण पूर्ण प्रमाण पत्र नहीं दिया गया है। युवाओं ने वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव,ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर,  ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव, तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, तथा अन्य बड़े-बड़े अधिकारियों को ज्ञापन दिया, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है।

इस मामले में मध्य प्रदेश के ऊर्जा विभाग में कार्य कर चुके युवाओं की मांग है, कि उन्हें उसी विभाग में रोजगार प्रदान किया जाए। 

राहुल बौद्ध 


शुक्रवार, 21 मार्च 2025

महाराजा छत्रसाल जी की वीरता का वर्णन

  • करो देस के राज छतारे
  • हम तुम तें कबहूं नहिं न्यारे।
  • दौर देस मुगलन को मारो
  • दपटि दिली के दल संहारो।
  • तुम हो महावीर मरदाने
  • करिहो भूमि भोग हम जाने।

महाराजा छत्रसाल ने मुगलों से कभी हार नहीं मानी और सदा विजेता रहे। वह बुंदेलखंड के एक महान योद्धा थे जिन्होंने अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए अनेक युद्ध लड़े। उनकी वीरता और साहस की कहानियां आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं ।

    यशस्वी अरजरिया (दर्शनशास्त्र छात्रा MCBU)

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

विजली विभाग : आउटसोर्स भर्ती में भ्रष्टाचार और भाई–भतीजावाद को लेकर जांच की मांग

छतरपुर ।   मीडिया रिपोर्ट में अवगत कराया गया कि        म.प्र.पू.क्षे.वि.वि.कं.लि.संभाग कार्यालय बिजावर एवं वितरण केंद्र बिजावर में आउटसोर्स भर्ती मे भ्रष्टाचार और भाई भतीजाबाद की नीति अपनाई गई है ।

राहुल अहिरवार ने अवगत कराया की मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड संभाग बिजावर एवं वितरण केंद्र बिजावर में एक एक पद खाली था, जिससे आउटसोर्स भर्ती के माध्यम से भरा जाना था, उपरोक्त पदों के लिए  अधीक्षण अभियंता मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड वृत कार्यालय छतरपुर द्वारा समस्त कार्यपालन अभियंताओं को लेख किया गया था,कि विभाग के खाली पदों पर आउटसोर्स भर्ती में  मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना के युवाओं एवं एक वर्ष ट्रेनिंग पूर्ण कर चुके अप्रेंटिसशिप युवाओं को प्रथम प्राथमिकता दी जाए, लेकिन  मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड संभाग बिजावर मे सेवानिवृत कर्मचारी  मोहम्मद यूसुफ के सगे संबंधी जाकिर मोहम्मद की आउटसोर्स पद पर भर्ती की गई, इसके पूर्व में मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना के युवा राहुल अहिरवार ने ट्रेनिंग पूर्ण के बाद रिक्त आउटसोर्स पद पर भर्ती हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना के युवा  के आवेदन को कार्यपालन अभियंता संभाग बिजावर द्वारा नजअंदाज किया गया कोई कार्यवाही नहीं की गई कार्यपालन अभियंता संभाग बिजावर द्वारा कार्यवाही न करने का मुख्य कारण  सेवानिवृत कर्मचारी मोहम्मद यूसुफ की सेवानिवृत होने के बाद भी सेवा लेना और मोहम्मद यूसुफ का प्रतिदिन ऑफिस आना तथा समस्त गोपनीय कार्य करना था, इस संबंध में राहुल अहिरवार ने  राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक आयोग भारत सरकार,  राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग भारत सरकार, माननीय मानव अधिकार आयोग भारत सरकार, माननीय प्रमुख सचिव श्रम विभाग मध्यप्रदेश शासन भोपाल, माननीय अपर सचिव महोदय ऊर्जा विभाग मध्यप्रदेश शासन, कलेक्टर जिला छतरपुर को ईमेल के माध्यम से शिकायती पत्र प्रेषित किया, और आउटसोर्स भर्ती में हुए भ्रष्टाचार की जांच करने  दोषियो पर कार्यवाही करने, तथा सेवानिवृत कर्मचारी मोहम्मद यूसुफ को  सेवानिवृत्ति के बाद कार्यपालन अभियंता संभाग बिजावर कार्यालय में सेवा देने से रोकने की मांग की ।






गुरुवार, 13 मार्च 2025

महाराज छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने पन्ना के प्राणनाथ और जुगल किशोर मंदिर का शैक्षणिक भ्रमण किया

छतरपुर । महाराज छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर से प्रणामी संप्रदाय विषय के विद्यार्थियों ने पन्ना के प्राणनाथ और जुगल किशोर मंदिर का शैक्षणिक भ्रमण किया। इस अवसर पर, छात्र अर्जुन कुमार ने बताया कि हमें प्रणामी संप्रदाय के बौद्धिक सत्र द्वारा प्रणामी संप्रदाय के बारे में गहराई से जानने का अवसर प्राप्त हुआ।

उन्होंने बताया कि  प्रणामी संप्रदाय से संबंधित गलत अवधारणाओं को दूर किया गया और असली और उचित सिद्धांतों का वर्णन किया गया। हमारे विभागाध्यक्ष जे. पी. शाक्य जी के मार्गदर्शन द्वारा हमने प्रणामी संप्रदाय का अपने विषय के रूप में चयन किया, जो हमारे लिए लाभप्रद रहा।

इस अवसर पर  छतरपुर के राजा महाराज छत्रसाल जी का प्रणामी संप्रदाय के प्रति विचार और दृष्टिकोण जानने का अवसर मिला। छात्रों ने जे. पी. शाक्य सर, बी. डी. नामदेव सर, और संतोष सर जी का धन्यवाद वयक्त किया है ।


गुरुवार, 6 मार्च 2025

वैधराज देशराज अहिरवार प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति से कर रहे जटिल रोगों का इलाज

छतरपुर । मीडिया रिपोर्ट मे वैधराज देशराज अहिरवार ने अवगत कराया कि बे मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बिजावर तहसील के रैदासपुरा गाँव में रहते हैं। वे आयुर्वेद के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियों का ईलाज करते हैं, जिनमें अंधापन, बहरापन, गूंगापन, जन्मजात अपाहिजता, जोड़ों का दर्द, गंजापन, पथरी, पुरानी से पुरानी सर्दी जुखाम, पेट से संबंधित समस्याएं, लकवा, खाज खुजली, सफेद दाग, पीलिया, सुन्नपन आदि शामिल हैं।

वैधराज देशराज अहिरवार का मानना है, कि आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जो भारत में लगभग 5,000 वर्षों से प्रचलित है। आयुर्वेद का अर्थ है "जीवन का ज्ञान" और यह प्राकृतिक तरीकों से स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को बनाए रखने पर केंद्रित है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों में से एक यह है कि शरीर में तीन दोष - वात, पित्त, और कफ - होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को नियंत्रित करते हैं।


वैधराज देशराज अहिरवार ने अपने पूर्वजों के ज्ञान और अनुभव का उपयोग करते हुए आयुर्वेदिक ईलाज पद्धति को विकसित किया है। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा ठीक किए गए मरीजों की संपूर्ण जानकारी उनके यूट्यूब चैनल वैधराज देशराज अहिरवार पर उपलब्ध है,जिससे सभी लोग देख सकते हैं, उन्होंने कहा कि वे छोटे से गाँव से संबंध रखते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को ईलाज मिले, उनके पास सोशल मीडिया ही एक रास्ता है, जो उनके ज्ञान अनुभव और ईलाज पद्धति को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने का प्रमुख साधन है,

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिजावर में सीटी स्कैन,एक्स-रे और सीबीसी आदि जाँचो की सुविधा उपलब्ध हो

  परिसंघ ने लिखा शासन को पत्र

 छतरपुर । जिले में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिजावर में सीटी स्कैन, एक्स-रे, और सीबीसी जैसी जांचों की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह समस्या इतनी गंभीर है कि कई मरीजों की इलाज के अभाव में मौत हो गई है।

दलित, ओबीसी, माइनॉरिटी, और आदिवासी संगठनों के परिसंघ ने मध्य प्रदेश सरकार और जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर इस समस्या का समाधान करने की मांग की है। परिसंघ के संयोजक इंजीनियर राहुल अहिरवार ने कहा है, कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिजावर को सीटी स्कैन, एक्स-रे,और सीबीसी जैसी जांचों की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार को जल्द से जल्द कार्यवाही करनी चाहिए।


गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

संत शिरोमणि रविदास जी की जयंती पर ग्राम रैदासपुरा में भव्य शोभा यात्रा निकाली गई एवं समारोह आयोजित हुआ

इंजीनियर राहुल अहिरवार

 
छतरपुर, मध्य प्रदेश।ग्राम रैदासपुरा की आयोजक समिति ने संत शिरोमणि रविदास जी की जयंती पर एक भव्य समारोह आयोजित किया। इस अवसर पर ग्राम के समस्त निवासियों ने भाग लिया और संत रविदास जी के जीवन और उनके संदेशों को याद किया।

समारोह की शुरुआत शोभा यात्रा से हुई, जो ग्राम के पंच चबूतरा से शुरू हुई और जटाशंकर रोड से होते हुए संपूर्ण ग्राम से होकर पंच चबूतरा पर समाप्त हुई। इसके बाद हवन किया गया और संत रविदास जी के जीवन और उनके संदेशों पर चर्चा की गई।

आयोजक समिति के सदस्य इंजीनियर राहुल अहिरवार ने कहा, "संत रविदास जी का जीवन समाज के सभी वर्गों के लिए प्रेरणा स्रोत है। उनकी भावपूर्ण कविताएं जाति और धर्म की सीमा से ऊपर उठते हुए पूरी मानवता को प्रेरित करती हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "ग्राम रैदासपुरा में संत रविदास जी की जयंती का एक अलग ही महत्व है। ग्राम की संपूर्ण जनसंख्या अहिरवार है, और ग्राम का नाम संत शिरोमणि रविदास जी के नाम पर ही रैदासपुरा पड़ा है।"

इस अवसर पर ग्राम के समस्त निवासियों ने संत रविदास जी के जीवन और उनके संदेशों को याद किया और उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया।

बुधवार, 29 जनवरी 2025

और लो महाकुम्भ ने भी आखिर बलियां ले ही ली

 

दुनिया में सनातन का झंडा ऊंचा करने वाले प्रयागराज के महाकुम्भ ने आखिर अपने कामयाबी की नयी इबारत लिखते हुए दर्जनों सनातनियों की बलि ले ही ली ।  संयोग ये है कि ये बलि किसी आजम खान के होते हुए नहीं हुई।  इनके लिए सीधे-सीधे तौर पर उत्तरप्रदेश के उत्तरदायी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिम्मेदार हैं ,लेकिन वे ये जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देंगे नहीं और न उनसे इस्तीफा माँगा जाना चाहिए।आज प्रयागराज में कोई 10  करोड़ लोग जमा हैं।  

महाकुम्भ 144  साल बाद  का दुर्लभ योग बताया गया था ।  उत्तरप्रदेश और देश की सरकार ने इस महाकुम्भ की धार्मिकता को ताक पर रखकर इसे एक ' मेगा ईवेंट ' में तब्दील कर दिया है। आम आदमी के लिए इस महाकुम्भ में कुछ भी नहीं है, सिवाय धक्के खाने के और भगदड़ में जान गंवाने के। ये महाकुम्भ विदेशी और देशी धनकुबेरों के लिए है।  ये महाकुम्भ सत्ता प्रतिष्ठान  के जलाभिषेक के लिए है ।  ये कुम्भ अब पतित पानी गंगा की गोद नहीं बल्कि एक हरम बनकर रह गया है। यहां भी वीआईपी संस्कृति का झंडा फहरा रहा है। इस कुम्भ पर खर्च किये गए 10  हजार   करोड़ रूपये भी निर्दोषों को मरने से नहीं बचा पाए। 

ये देश विज्ञान,ज्ञान,अनुसन्धान और मानवाधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में विश्वगुरु नहीं बनना चाहता।  ये देश धर्म के क्षेत्र में विश्वगुरु बनना चाहता है लेकिन बन नहीं पा रहा। यहां धर्म की ध्वजाएं फहराने वाले पक्के सनातनी ,असंख्य नागाओं के गुरु सत्ता के स्तुतिगान में लगे हैं।  उनके पास बदइन्तजामों पर ऊँगली उठाने की फुर्सत ही नहीं है और नतीजा आपके सामने  है।  अभी तो महाकुम्भ में मौनी अमावस्या पर हुई भगदड़ में मरने वालों की संख्या बहुत कम [17] बताई  गयी है लेकिन ये कहाँ तक जाएगी ये कोई नहीं जानता। 

देश में धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए भाजपा की सरकारें एड़ी-चोटी का जोर लगा रहीं हैं ताकि देश को जल्द से जल्द हिन्दू राष्ट्र में तब्दील किया जा सके। इसी उन्माद के चलते  मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में गंगा जल निर्दोष सनातनियों के खून  से रक्ताभ हो गयी ।  आपको बता दें कि सनातन धर्म में मौनी अमावस्या का अत्यधिक महत्व है। माघ माह में पड़ने वाली मौनी अमावस्या  आत्मसंयम, मौन साधना और पवित्र स्नान के लिए समर्पित होती  है। इस बार मौनी अमावस्या  प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान इसी दिन तीसरा शाही स्नान होन था लेकिन हो गयी भगदड़। मेले में मची भगदड़ के बाद निरंजनी अखाड़े ने स्नान जुलूस रोक दिया है। फिलहाल अखाड़ों ने अमृत स्नान स्थगित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  भी हादसे की जानकारी  ली है। 

महाकुम्भ में पुण्य स्नान करने वालों के आंकड़े दिनोदिन बढ़ते ही जा रहे है।  उत्तरप्रदेश सरकार इन आंकड़ों को दिखाकर गौरवान्वित अनुभव कर रही थी ।  मीडिया और भाजपा इस भव्य-दिव्य आयोजन के लिए योगी-मोदी की बलैयां ले रहा था ,लेकिन अब सब मौन हैं। मौनी अमावस्या पर मंगलवार और बुधवार की दरम्यानी रात हुई भगदड़ ने यहां के महा प्रबंध की पोल खोलकर रख दी है ,लेकिन मजाल कि कोई अखाड़ा या अखाड़ा परिषद उत्तरप्रदेश सरकार या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक शब्द बोले ! सब मौनी बाबा बन गए हैं। अब यदि कोई बोलेगा तो उसे सनातन विरोधी करार दे दिया जाएगा। 

देश में भगदड़ की घटनाओं का लंबा इतिहास है ,इन हादसों के लिए सरकारी मशीनरी और आम जनता ही जिम्मेदार होती है। उत्तर प्रदेश तो भगदड़  के लिए अब कुख्यात हो चला है। आपको याद होगा कि पिछले साल ही उत्तर प्रदेश के हाथरस में आयोजित सत्संग के दौरान मची भगदड़ में करीब 120 लोगों की मौत हो गई थी।  । महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में 2005 के दौरान हुई भगदड़ में 340 श्रद्धालुओं की मौत और 2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर हुई भगदड़ में कम से कम 250 लोगों की मौत ऐसी ही कुछ बड़ी घटनाएं हैं। हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भी 2008 में ही धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ में 162 लोगों की जान चली गई थी। दो साल पहले 31  मार्च 2023  को इंदौर शहर के एक मंदिर में रामनवमी के अवसर पर आयोजित हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन बावड़ी के ऊपर बनी स्लैब ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गईथी। लेकिन हम और हमारा देश इन हादसों से कभी कोई सबक नहीं लेता। 

महाकुम्भ में आगामी 5  फरवरी को मोक्ष की कामना लेकर देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर ढाढ़स मोदी जी भी डुबकी लगाने आने वाले है।  वे अब यहां डुबकी लगाने आएंगे या मृतकों और घायलों के परिजनों को सांत्वना देने ,ये पता नहीं है। लेकिन वे आएंगे जरूर। क्योंकि महाकुम्भ में डुबकी लगाए बिना कोई सनातनी कैसे कहलायेगा ? लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने महाकुम्भ में डुबकी नहीं ली इसलिए वे सनातनी नहीं हैं। वे इस हादसे के बाद दिल्ली विधानसभा का चुनाव प्रचार छोड़कर प्रयागराज आएंगे या नहीं कोई नहीं जानता ,लेकिन इस हादसे से दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जाना अब कठिन हो गया है और योगी जी के दिल्ली जाये बिना विधानसभा चुनाव में भाजपा का बेड़ा पार लग  नहीं सकता। 

फ़िलहाल मैं परिजनों  में हुई भगदड़ में मरे गए सनातनियों के परिजनों के प्रति संवेदना से भरा हुआ हूँ ।  मुझे घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना  भी करना है। मैं चाहूंगा की मृतकों को ऊपर वाला सीधे मोच्छ प्रदान करे। मुझे न मोच्छ चाहिए और न अपने पाप गंगा में धोना हैं इसलिए मैं दूर से ही गंगाजी को प्रणाम कर रहा हूँ ।  आपसे भी निवेदन है कि अपने घर पर ही रहें और महाकुम्भ में अव्यवस्था की बेदी पर शहीद हुए लोगों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना  करें,मौन रहें । 

@ राकेश अचल


मंगलवार, 21 जनवरी 2025

एक बार फिर USK मानवाधिकार उज्जैन मध्य प्रदेश टीम द्वारा नि:शुल्क कैंप लगाया गया

 जिला ब्यूरो रिपोर्ट उज्जैन

उज्जैन /आज USK मानवाधिकार उज्जैन मध्य प्रदेश टीम के द्वारा वार्ड 35 वजीर पार्क कॉलोनी होटल नोवल इन में एक बार फिर से सुकन्या कन्या योजना बैंक खाता एवं जीरो बैंक खाता ओर आयुष्मान कार्ड बनाने के लिए नि:शुल्क कैंप लगाया गया।जिस कैंप का लोगो ने खूब लाभ उठाया और कार्यक्रम में उपस्थित सहयोगी टीम उपाध्यक्ष एडवोकेट फैसल एहमद जी, कोषाध्यक्ष एडवोकेट अनस अंसारी जी, संयुक्त सचिव गुलरेज अंसारी जी, सहायक प्रमोद चम्पावत जी,राहुल जी,बैंक सहयोगी टीम अंकित जैन जी,अकरम अंसारी जी, सहयोगी आशाकरीकर्ता शबनम खान जी,सहयोगी होटल ऑनर एडवोकेट रफीक अंसारी जी आदि कार्यकर्ता कार्यक्रम में उपस्थित रहे और सभी साथीयो ने मिल कर कार्यक्रम को सफल बनाया और usk मानवाधिकार संस्थापक शैहरोज कुरेशी जी ने सभी साथियों का आभार व्यक्त किया।

गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

हंगामा है क्यों बरपा थोड़ा सा जो बहके हैं

 

देश केंद्रीय गृहमंत्री माननीय अमितशाह द्वारा डॉ भीमराव अम्बेडकर के बारे में की गयी कथित टिप्पणी को लेकर खामखां परेशान है, शाह का इस्तीफा मांग रहा है।  अरे देश को तो खासतौर पार आंबेडकर वादियों को  तो अमितशाह और उनकी सरकार की जय-जय करना चाहिए ,की उन्होंने जितना डॉ भीमव आंबेडकर के लिए किया उतना देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नहीं किया। हमारे अमित भाई तो सपने में भी डॉ आम्बेडकर का अपमान नहीं कर सकते । वे तो डॉ आंबेडकर को मोदी से बड़ा नेता मानते हैं शायद  !

संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर को न मैंने देखा है और न माननीय अमित शाह साहब न।  जब मैंने नहीं देखा तो शाह साहब डॉ अम्बेडकर को कैसे देख सकते है।  वे मुझसे पांच साल छोटे हैं और डॉ अम्बेडकर हमारे जन्म से तीन साल पहले ही दिवंगत   हो गए थे ।  शाह साहब तो डॉ आंबेडकर के निधन के 8  या 9  साल बाद इस धराधाम पर आये। उन्हें डॉ अम्वेडकर के बारे में उतना ही ज्ञान है जितना संघ की शाखाओ में प्रबोधनों के जरिये उन्हें मिला। फिर भी मुझे यकीन है कि उन्होंने डॉ आंबेडकर के बारे में कम से कम मुझसे तो ज्यादा पढ़ा ही होगा। तभी तो वे डॉ अम्बेदककार का नाम संसद में बार-बार लिए जाने से भड़क गए।

हकीकत ये है कि   अमित साह साहब के कानों  को केवल मोदी-मोदी की मंगल ध्वनि  सुनने की आदत है इसलिए वे कोई दूसरानाम सुन ही नहीं सकते ।  बर्दाश्त कर ही नहीं सकते, इसीलिए जब बार-बार डॉ अम्बेडकर का नाम लिया गया तो उनके सब्र का बांध टूट गया और वे कह बैठे की -' 'अभी एक फैशन हो गया है. अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर... इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता है.' अमित शाह साहब ने ये शब्द गुस्से में कहे या प्रेम से कहे इसका तो हमें पता नहीं लेकिन जब उनका ये कथन वायरल हुआ और देशव्यापी प्रतिक्रियाएं आने लग्न तो पूरी भाजपा के अधोवस्त्र पीतांबर   होने लगे। बेचारी पीआईबी फैक्ट चेक को  सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अमित शाह के भाषण का क्लिप्ड और फुल वीडियो शेयर करना पड़ा और सफाई देना पड़ी की जानबूझकर शाह साहब के भाषण को काट-छांटकर दिखाया जा रहा है।

अब पीआईबी कहती है तो देश को मान लेना चाहिए की हमारे सम्माननीय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह साहब के साथ अन्याय हुआ ह।  उन्होंने तो डॉ आंबेडकर जी के प्रति कुछ कहा ही नही।  उनके निशाने पर तो भाजपा और संघ के जन्मजात शत्रु पंडित जवाहर लाल नेहरू थे।  लोकसभा में नेहरू को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने गरियाया और बाकी की कसर अमित शाह साहब ने पूरी कर दी। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि विपक्ष अमित शाह के पूरे भाषण को छिपा रहा है और एक छोटे हिस्से को काटकर गलत तरीके से फैला रहा है। चलिए मन लेते हैं की विपक्ष ही इस समूची हरकत के पीछे ह।  लेकिन सरकार ये तो बताये की उसने दस साल छह महीने में अम्बेडकरवादियों के कयलन के लिए क्या किया ?

अमित शाह तो दरअसल पूरे वीडियो में ये कह रहे हैं की -अ 'हमें तो आनंद है कि अंबेडकर का नाम लेते हैं. अंबेडकर का नाम अभी 100 बार ज्यादा लो परंतु साथ अपने अंबेडकर जी के प्रति आपका भाव क्या है, ये मैं बताता हूं ?  उन्होंने आँखें नचाकर अपने अंदाज में कहा की-अंबेडकर जी ने देश की पहली कैबिनेट से इस्तीफा क्यों दे दिया? अंबेडकर जी ने कई बार कहा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों से हुए व्यवहार से मैं असंतुष्ट हूं. सरकार की विदेश नीति से मैं असहमत हूं और आर्टिकल 370 से मैं असहमत हूं इसलिए मैं मंत्रिमंडल छोड़ना चाहता हूं. उन्हें आश्वासन दिया गया।  आश्वासन पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने इग्नोरेंस के चलते इस्तीफा दे दिया.।'  यानि अमित शाह साहब ये साबित करना चाहते थे की डॉ अम्बेडकर अजन्मी भाजपा और दिवागत हो चुकी जनसंघ के अलावा राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ की तरह पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के विरोधी थे।

अपनी लम्बी और कर्कश जबान की वजह से आलोचनाओं का शिकार हुए अमित शाह अब कहते फिर रहे हैं कि 'अंबेडकर जी के स्मारक तब बने जब भारतीय जनता पार्टी केंद्र में आई।  मऊ में अंबेडकर जी के जन्म स्थान में स्मारक बना. लंदन में जहां अध्ययन करते थे वहां स्मारक बना, नागपुर में शिक्षा-दीक्षा ली वहां स्मारक बना, दिल्ली में महापरिनिर्वाण स्थल पर बना और मुंबई में चैत्य भूमि में भी बन रहा है।  शाह साहब का दावा है की  हमने पंचतीर्थ बनाए हैं।  उन्होंने कहा की मान्यवर मैं मानता हूं कि अंबेडकर जी के सिद्धांतों पर चलना नहीं और वोट के लिए उनकी गुहार लगा देना. 14 अप्रैल को राष्ट्रीय समरसता दिवस घोषित किया हमने. 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया, उस वक्त भी इसका विरोध कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने किया.'।

डॉ अम्बेडकर ने जिस समाज के लिए लड़ाई लड़ी उस समाज के ऊपर देस्शभर की डबल इंजिन की  सरकारों के क्षेत्रों में क़ानून और व्यवस्था के साथ ही  दलित, पीड़ित और आदिवासियों के मुद्दों पर जिस तरीके से काम हो रहा है  वो किसी से छिपा  नहीं है। डॉ अंबेडकर को मानने वाले जानते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने डॉ अम्बेडकर के समर्थकों  के लिए कितना किया और भाजपा ने कितना किया । संसद के शीत सत्र का हासिल इसी तरह के विवाद रहे है।संसद के इस सत्र का आगाज भी 25  नम्बंर को हंगामे के साथ हुआ  था और समापन भी हंगामे के साथ ही हुआ है।  दोनों का श्रेय सीधे-सीधे भारत की सरकार को दिया जा सकता है। देश कि अम्बेडकर वादियों को उतनी ही गंभीरता से अपने अंक से लगना चाहिए जो कि  आमीन ,

@ राकेश अचल

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

कभी टोले से डरती है ,कभी झोले से डरती है

 

आजकल जैसे संसद में मुद्दों पर काम नहीं हो रहा उसी तरह मुझे भी लिखने के लिए ऐसे मुद्दे मिल रहे हैं जिनके बारे में लिखने  में मुझे तकलीफ होती है। आज मै फिर उस गैर जरूरी मुद्दे पर लिख रहा हूँ उसके बारे में लोकसभा का कीमती वक्त तो अभी बर्बाद नहीं हुआ लेकिन भाजपा का कीमती वक्त जरूर बर्बाद हो गया। ।  मुद्दा था कांग्रेस संसद प्रियंका वाड्रा का झोला। जी हाँ  झोला। हमारी प्रिय भाजपा  के पास किसानों के मुद्दों पर बहस के लिए वक्त नहीं है लेकिन प्रियंका के झोले को लेकर पूरी  सरकारी पार्टी बहस में उलझ गयी।

किस्सा यूं है कि प्रियंका वाड्रा लोकसभा में जो झोला लटका कर गयीं उसके ऊपर फिलिस्तीन अंकित था और फिलस्तीन का खरबूजा वाला ध्वज भी ।  बस यही भाजपा को खटक गया। इस कदम की भाजपा ने आलोचना की और उनके इस कदम को "तुष्टिकरण" करार दिया. बीजेपी सांसद संबित पात्रा ने प्रियंका गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, "गांधी परिवार तुष्टिकरण का झोला ढो रहा है." उन्होंने कहा, इसी तुष्टिकरण की वजह से उन्हें (कांग्रेस) चुनावों में हार मिली है। "

भाजपा द्वारा की गयी झोले की आलोचना के बाद प्रियंका भी कहाँ चुप रहने वाली थीं। उन्होंने पलटवार करते हुए  कहा कि यह आलोचना "पितृसत्ता" है, जहां उन्हें "बताया जा रहा है कि क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है." उन्होंने कहा, "मैं पितृसत्ता का समर्थन नहीं करती. मैं वही पहनूंगी जो मैं चाहती हूं। '

आपको याद होगा की इससे पहले केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री  भाई किरेन रिजिजू प्रियंका  के भाई राहुल गांधी की टीशर्ट पर आपत्ति कर चुके है।  वे कह चुके हैं कि   राहुल टीशर्ट पहनकर संसद का अनादर करते हैं। दरअसल भाजपा राहुल गांधी से तो पहले से डरी हुई थी और अब प्रियंका के लोकसभा में आने के बाद भाजपा का डर दोगुना हो गया है।  तभी तो कभी भाजपा को राहुल  के टीशर्ट के बाहर झांकते ' टोले ' परेशान  करते हैं तो कभी प्रियंका के कंधे पर लटका झोला।

संविद पात्रा के बाद  भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने प्रियंका को "राहुल गांधी से भी बड़ी आपदा" कहा है।  उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "इस संसद सत्र के अंत में, कांग्रेस में सभी के लिए दो मिनट का मौन रखें, जो मानते थे कि प्रियंका वाड्रा लंबे समय से प्रतीक्षित समाधान थीं, उन्हें पहले ही इसे अपना लेना चाहिए था।  वह राहुल गांधी से भी बड़ी आपदा हैं, जो सोचते हैं कि संसद में फिलिस्तीन के समर्थन में बैग लेकर चलना पितृसत्ता से लड़ना है।  यह सही है. मुसलमानों को सांप्रदायिक सद्गुणों का पैगाम देना अब पितृसत्ता के खिलाफ रुख के रूप में सामने आ रहा है! कोई गलती न करें, कांग्रेस नई मुस्लिम लीग है।

आपको याद हो या न हो किन्तु मै बता दूँ कि  पिछले सप्ताह नई दिल्ली स्थित फ़लस्तीनी दूतावास के चार्ज़ डिअफ़ेयर्स ने प्रियंका गांधी से मुलाक़ात कर उन्हें वायनाड से सांसद निर्वाचित होने पर बधाई भी दी थी. पूर्व में कांग्रेस नेता ग़ज़ा में इसराइली बमबारी की निंदा भी कर चुकी है। भाजपा के ही सांसद अनुराग ठाकुर जो पहले कभी केंद्र में मंत्री होते थे वे भी प्रियंका के फिलिस्तीनी झोले से आतंकित   हैं ।  उन्होंने कहा की प्रियंका केवल फैशन स्टेटमेंट  बनाने में लगी रहती हैं। उन्होंने बांग्लादेश में हिन्दुओं के ऊपर हो रहे अत्याचार के बारे में तो कुछ नहीं बोला।भाजपा के तमाम छोटे-बड़े नेता प्रियंका के झोले को लेकर प्रियंका को कोस रहे हैं।

दरअसल प्रियंका के झोले ने भारत सरकार को फिलस्तीन के मामले में कटघरे में ला खड़ा किया है।  भारत सरकार अभी तक ये तय नहीं कर पायी है कि  वो भारत के पुराने मित्र फिलिस्तीन के साथ है या इजराइल के साथ ? फिलस्तीन के मामले में नेहरू और इंदिरा गाँधी के युग में जो नीति थी उसे अटल जी के युग में भी दोहराया गया ,लेकिन मोदी युग में फिलिस्तीन को लेकर भारत की नीति अचानक बदल गय।  भारत अब फिलिस्तीनियों के संघर्ष और उनके मानवीय अधिकारों  का दमन करने वाले इजराइल के साथ खड़ा है। भारत ने इजराइल के फेर में फिलिस्तीन को एकदम भुला दिया है क्योंकि फिलिस्तीन में इजराइली बर्बरता का शिकार हो रहे लोग मुसलमान हैं।

मुमकिन है कि  कांग्रेस की संसद प्रियंका वाड्रा ने एक झोले के जरिये फिलिस्तीन मुद्दे को जिस ढंग से उठाया है उसके बारे में आज नहीं तो कल संसद में भी बहस हो।  संसद में बहस हो या न हो लेकिन संसद के बाहर तो ये बहस शुरू हो गयी है।  बहस इस बात पर भी हो रही है की क्या अब विपक्षी सांसदों को भाजपा यानि भाजपा सरकार से पूछना होगा की वे कौन से कपड़े पाहणकर संसद में आएं और कौन से कपड़े न पहने ? कौन सा झोला लटकाएं और कौन सा नहीं ?

 आपको याद होगा कि  भाजपा पहले भी लोगों के खान-पान और पहनावे को लेकर सवाल खड़े करती रही है ।  कभी उसके निशाने पर हिजाब रहता है तो कभी हलाल और गैर हलाल किया हुआ भोजन। असम में भाजपा की डबल इंजिन की सरकार होटलों में गौमांस बेचने पर प्रतिबन्ध लगा चुकी है लेकिन देश से गौमांस बाहर भेजने पार कोई प्रतिबन्ध नहीं है।  उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार को हलाल के मुद्दे पर तकलीफ रही है ।  कर्नाटक में भाजपा और उसके सहयोगी हिजाब पार तेजाबी रुख अख्तियार कार चुके हैं। लेकिन किसानों,मजदूरों के मुद्दे पर भाजपा का कोई प्रवक्ता,कोई नेता या संसद अपना मुंह नहीं खोलता।

राहुल की टीशर्ट और प्रियंका के झोले से बौखलाई भाजपा का डर  लोकसभा में इस जोड़ी की वजह से दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है।  भाजपा ने राहुल गांधी को पप्पू साबित करने में अपनी तमाम ताकत झौंक दी थी लेकिन आम चुनाव में राहुल की अगुवाई में विपक्षी गठबंधन ने जो शानदार कामयाबी  हासिल की थी  उसे कोई भूला नहीं है। अब प्रियंका के लोकसभा में आने के बाद भाजपा को  भय है कि  कहीं  प्रियंका भाजपा को बेनकाब करने में राहुल से भी आगे न निकल जाएँ, इसलिए अब भाजपा प्रियंका के पहनावे के साथ ही उनके झोले पर भी निगाह रखने लगी है।

हाल के दिनों में आपने देखा होगा कि  पहले राहुल गाँधी ने भाजपा की सरकार को संविधान के मुद्दे पर अपने पाले में खींचा और अब फिलिस्तीन के मुद्दे पर प्रियंका वाड्रा ने महज एक झोला लटकाकर भाजपा और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।  संविधान के मुद्दे पर तो प्रधानमंत्री जी लोकसभा में एक भाषण देकर फारिग हो गए लेकिन फिलिस्तीन के मुद्दे पर अभी तक सरकार ने चुप्पी साध रखी है ,लेकिन आज नहीं तो कल भाजपा सरकार को इस मुद्दे पर बोलना ही पडेगा। हालाँकि हमारी सरकार मौनव्रती सरकार है।  वो डेढ़ साल से मणिपुर के मुद्दे पर मौन है ,किसानों के  मुद्दे पर मौन है।

@ राकेश अचल

सोमवार, 16 दिसंबर 2024

किसानों की अस्मिता को ललकार रही है सरकार


हर मुद्दे पर टेसू की तरह अड़ने वाली केंद्र सरकार ने एक बार फिर किसानों की अस्मिता को ललकारा है ।  केंद्र सरकार पिछले 20  दिन से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को बहुत हल्के में ले रही है।  किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल 19 दिनों से अनशन पर हैं।  उनकी मांग है कि सरकार एमएसपी की कानूनी गारंटी दे ताकि किसानों की आत्महत्या न करना पड़े। आपको याद होगा की देश के किसान इससे पहले 2020  में केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए 3  किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ एक लम्बे आंदोलन से गुजर चुके हैं।

एक देश एक चुनाव जैसे मुद्दों पर देश को उलझाए रखने वाली केंद्र सरकार के पास पिछले 20  दिन से आंदोलनरत किसानों की मांगों पार ध्यान देने की फुरसत नहीं है । सरकार की वादा खिलाफी को लेकर दोबारा आंदोलन के रस्ते पर आये किसानों के नेता जगजीत सिंहडल्लेवाल ने कहा कि उन किसानों का जीवन जो सरकार “सरकार की गलत नीतियों” के कारण आत्महत्या कर रहे हैं, उनके जीवन से ज्यादा मूल्यवान है।  तीन साल पहले हुए किसान आंदोलन में लगभग 700  किसानों ने आत्मोत्सर्ग  किया था। तब का आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा पारित तीनों कानूनों को वापस लेने और प्रधानमंत्री  नरेंद्र दामोदर दस मोदी  द्वारा किसानों से माफ़ी मांगने के बाद समाप्त हुआ था।

आपको स्मरण करा दूँ कि   पिछले 25 सालों में 5 लाख से ज्यादा किसानों ने कृषि क्षेत्र में संकट के चलते आत्महत्या की है।  इसे रोकने का एकमात्र उपाय स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देना है।  ये मामला   सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान  में भी है ।  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस बारे में कुछ निर्देश भी दिए थे लेकिन बात बनी नहीं।  जगजीत सिंह  सुप्रीम कोर्ट से  भी अपील कर रहे हैं  कि सरकार पर दबाव डालकर किसानों को आत्महत्या से बचाने का कदम उठाए। 70 वर्षीय जगजीत सिंह डल्लेवाल कैंसर के मरीज हैं।  वे 26 नवंबर से पंजाब और हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर अनशन पर है।  उनकी  मुख्य मांग केंद्र सरकार की ओर से एमएसपी की कानूनी गारंटी देना है।  डॉक्टरों ने उनकी बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की सिफारिश की है, लेकिन डल्लेवाल अपने संकल्प पर अडिग है।

पंजाब से लगी हरियाणा की सीमा पर शनिवार को दिल्ली की ओर बढ़ रहे प्रदर्शनकारी किसानों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने आंसू गैस के गोले छोड़े और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया।  इस दौरान कुछ किसानों के घायल हो जाने के कारण प्रदर्शनकारी किसानों ने अपना 'दिल्ली चलो' मार्च एक दिन के लिए स्थगित कर दिया।  खबर है   की इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन पर जानकारी ली और मंत्रियों के साथ चर्चा की।

किसानों का आंदोलन अभी खुद किसान कर रहे हैं,लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजर रहे हैं वैसे -वैसे इस बात की आशंका भी बढ़ रही है कि इस आंदोलन में राजनीतिक दल भी कूद सकते हैं। हरियाणा की कांग्रेस विधायक और मशहूर ओलम्पियन  विनेश फोगाट तो खनेरी सीमा पर अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल से मिलने पहुँच ही गयीं। विनेश ने कहा की आज देश में इमरजेंसी जैसा माहौल है ।  सरकार न किसानों कीबात सुन रही है और न मजदूरों की।

किसानों का दुर्भाग्य ये है कि पिछले 25 नवमबर से शुरू हुए संसद के शीत सत्र में भी किसान आंदोलन को लेकर कोई ख़ास खरखसा नहीं हुआ ।  संसद अडानी और संविधान के मुद्दे पर ही हंगामाग्रस्त  है। विपक्ष राज्य सभा के सभापति के खिलाफ तो अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए शायर है किन्तु किसानों के मुद्दों को लेकर उसके पास कोई रणनीति नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान पर हुई बहस के दौरान भी किसान आंदोलन को लेकर एक शब्द नहीं कहा। कृषि प्रधान देश में किसानों की बदहाली अभी तक राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बन पायी है ।  सभी राष्ट्रीय दल दिल्ली विधानसभा चुनाव में उलझे हैं किन्तु किसान किसी को नजर नहीं आ रहे।आपको याद होगा कि इससे पहले मोदी कैबिनेट के तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमार भी किसान आंदोलन को समाप्त करने में नाकाम साबित हुए थे और अब नए केंद्रीय कृषि मनत्री शिवराज सिंह चौहान  भी तोमर की गति को प्राप्त होते  दिखाई दे रहे हैं।

किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार के रवैये को देखकर कभी-कभी ऐसा लगता है की केंद्र जानबूझकर किसानों के साथ मणिपुर की जनता के साथ की जारही अनदेखी को दोहरा रही है। किसान देश के कारपोरेट घरानों के चंगुल में फसने से आंतकित और आशंकित हैं। आपको बता दें कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को घोषणा  की थी  कि केंद्र तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करेगा। तब से लेकर अब तक केंद्र की सरकार रूस और यूक्रेन युद्ध सुलझाने के लिए भाग-दौड़ करचुकी है ।  आम चुनाव निबटा चुकी है ।  आम चुनाव के बाद चार राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है ,लेकिन किसानों को दिए आश्वासनों के अनुरूप नए किसान क़ानून नहीं बना पायी। लगता है ज्सिअए सरकार देश में अच्छे दिन लाना भूली है वैसे ही किसानों से किये गए वेड भी उसे याद नहीं है।

हकीकत ये है कि किसान केंद्र सरकार की प्राथमिकता  में हैं ही नही।  केंद्र को तो एक देश ,एक चुनाव , समान नागरिक संहिता ,वक्फ बोर्ड संशोधन की चिंता ह।  केंद्र को चिंता है की कैसे देश भर में अल्पसंख्यकों की मस्जिदों का सर्वे कराकर वहां खुदाई कर दबे मंदिर निकाले जाएँ। केंद्र को चिंता है की प्रयाग में महाकुंभ भव्य-दिव्य कैसे हो ? केंद्र को अडानी की चिंता है ,बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री  शेख हसीना की चिंता है। देश के किसान दूर-दूर तक उसकी फेहरिश्त में हैं ही नहीं। किसानों के मुद्दे पर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को हड़काने वाले राज्य सभा के सभापति श्रीमान जगदीप धनकड़ किसानों  कि चिंता छोड़ ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के महल में शाही भोज के मजे ले रहे हैं।

 आपको याद हो तो पूर्व के किसान आंदोलन के समर्थन में देश के बाहर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया तक में जुलूस निकाले गए थे।  इस बार किसान आंदोलन क्या शक्ल लेगा ,फिलहाल कहा नहीं जा सकता। लेकिन एक बात तय है की जिस देश का किसान सड़कों पर होगा वो देश किसी भी सूरत में दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन ही नहीं सकता।

@ राकेश अचल

रविवार, 15 दिसंबर 2024

संविधान पर बहस में सब कुछ तहस-नहस

लोकसभा में संविधान पर बहस के बाद माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का उत्तर सुनकर समझा में आ गया कि उन्होंने संघ की साखा में संविधान के  बारे में जो कुछ पढ़ा-लिखा उससे ज्यादा वे संविधान  के बारे में जानते नहीं हैं। संविधान पर बहस के दौरान उठाये गए एक भी सवाल का उत्तर देने के बजाय वे अपने सिर पर सवार जवाहरलाल नेहरू,इंदिरा गाँधी और राजीव गांधी के भूत को बिदारते नजर आये। वे नहीं बता पाए कि  उनके युग में संविधान कैसे मजबूत हो रहा है ?

मै माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदार दास मोदी के भाषण को दत्त-चित्त होकर सुनता हूँ। शनिवार को भी मैंने उन्हें लोकसभा में सुना ।  वे प्रधानमंत्री के स्तर का भाषण देने में हमेशा की तरह विफल हुए ,उन्होंने संविधान पर भाषण देते समय संविधान पर अपने गहन अध्ययन का प्रदर्शन करने के बजाय सिर्फ वो सब उद्घाटित किया जो संघ  की शाखाओं   में स्वयं सेवकों को पिछले 100  साल से दीक्षित किया जा रहा है। मोदी जी संघ के प्रचारक हैं ये हकीकत है लेकिन वे देश के प्रधानमंत्री हैं इसलिए उन्हें शाखाओं के ज्ञान से ज्यादा सिखने की जरूरत है।उन्हें देश को बताना चाहिए था कि  पिछले दस साल में उनकी सरकार में संविधान की रक्षा के लिए क्या कदम उठाये ?
 संविधान संशोधनों को लेकर माननीय मोदी जी ने पिछली सरकारों के कामकाज को संविधान के साथ खिलवाड़ बताया ,लेकिन जोर देकर कहा कि  उनकी सरकार ने संविधान के साथ जो भी किया तो डंके की चोट किया। यानि वे परोक्ष रूप से कह रहे हैं कि  -वे  करें तो करेक्टर ढीला, हम  करें  तो रास लीला। संविधान के साथ किस पार्टी और सरकार ने खिलवाड़ किया ये पूरा देश जानता है। कांग्रेस ने आपातकाल लगाया ये सभी को पता है।  मोदी जी कहते हैं कि  आपातकाल का कलंक कांग्रेस के माथे से कभी मिट नहीं सकता ,लेकिन वे भूल जाते हैं कि  इसी देश की जनता ने,विपक्ष की खिचड़ी  जनता सरकार के गिरने के बाद  मशीन और मशीनरी के बिना हुए आम चुनाव में कांग्रेस को विजय श्री देकर इस कलंक को मिटा दिया था। मेरा दृढ विश्वास है कि  मोदी जी जब तक प्रधानमंत्री रहेंगे तब तक उनके सिर से  जवाहर लाल नेहरू का,इंदिरा गाँधी का ,राजीव गांधी का यहां तक की राहुल गांधी का भूत उतरने वाला नहीं है और जब तक ये भूत उनके सर पर सवार रहेगा वे न चैन से काम कर पाएंगे और न संविधान के विधान को  समझ पाएंगे।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी देश को आश्वस्त नहीं कर पाए कि  उनके लिए संविधान  बड़ा है या मनु स्मृति ? वे ये स्पष्ट नहीं कर पाए की उन्हें धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द से तकलीफ है या नहीं? वे ये भी नहीं बता पाए की संविधान को लेकर वीर सावरकार साहब जो सोचते थे ,क्या वे उससे सहमत हैं या नहीं ? वे तमाम प्रश्नों का उत्तर देने के बजाय जम्मू-कश्मीर से धारा 370  हटाने को ही अपनी सबसे बड़ी संविधान की सेवा बताते हुए नहीं थकते। संविधान  का सम्मान करना और संविधान की धज्जियां करना दो अलग-अलग काम हैं। मौजूदा सरकार ने पिछले  एक दशक में संविधान की सेवा किस तरह से की है ,देश और दुनिया जानती है। जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीनना, मणिपुर को डेढ़ साल से अनाथ छोड़ना संविधान की सेवा नहीं है। देश में अल्पसंख्यक समाज को आतंकित करना,उन्हें लक्ष्य बनाकर बुलडोजर दौड़ा देना संविधान की सेवा नहीं है। तमाम मंदिरों-मस्जिदों की खुदाई का अभियान  चलाना संविधान  की सेवा नहीं है। संविधान समदृष्टा है ,लेकिन सरकार नहीं है। सरकार लगातार हिन्दू-मुसलमान का खेल खेलती आ रही है।
सोमवार को राज्य सभा में भी यदि संविधान पर बहस हुई तो आप तय मानिये कि  केंद्रीय गृहमंत्री भी प्र्धानमंत्री जी के भाषण को ही दोहराएंगे। विसंगति ये है कि  संविधान को लेकर डींगे हांकने वाले लोग वे हैं जिनकी मात्र संस्थाओं का ,पूर्वज नेताओं का देश   के संविधान  के निर्माण में कोई योगदान नहीं रहा। वे तो दूसरे तरह का संविधान चाहते थे।यानि आज का संविधान आज की सरकार के मन का   संविधान नहीं है। संविधान की प्रस्तावना ही आज की सरकार को पसंद नहीं है ।  आज की सरकार को पूर्व की सरकारों द्वारा किये गए संशोधन पसंद नहीं है। संसद में संविधान की प्रति का लहराना पसंद नहीं है ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि  सरकार के पास इतनी ताकत नहीं है कि  वो विरासत में मिले संविधान  को बदल सके।
संसद में माननीयों के भाषण से ये जाहिर हो गया है कि  आज की सरकार के लिए कल का संविधान केवल शपथ लेने की एक किताब है ,लेकिन कोई भी संविधान में लिखे विधान का अनुशरण करना नहीं चाहता। इस समय देश की सरकार के सिर पर एक देश,एक चुनाव का भूत सवार है ।  सरकार देश में एक विधान,एक निशान ,एक भाषा,,एक धर्म और अंत में एक नेता के सिद्धांत पर आगे बढ़ना चाहती है। केंद्र सरकार का हर कदम देश के सांविधान के खिलाफ उठाया जा रहा है । प्रधानमंत्री जी के भाषण से उनकी संविधान  के प्रति आस्था और समर्पण का अनुमान लगाया जा सकता है। मोदी जी की तकलीफ है कि  आजादी के बाद सरदर पटेल के बजाय नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया गया था। लेकिन वे भूल जाते हैं कि  उन्हें भी लालकृष्ण आडवाणी को धकियाकर प्रधानमंत्री बनाया गया था। यानि जो कल हुआ ,वो ही आज भी हो रहा है। यदि कांग्रेस अपनी पार्टी के संविधान  को नहीं मान रही तो भाजपा कौन से आपने संविधान को मान रही है ।  भाजपा भी कांग्रेस का अनुशरण करते हुए अपनी पार्टी के संविधान की धज्जियां उड़ा रही है।
बहरहाल इस देश के संविधान  की अनदेखी करना किसी भी सरकार को महंगा पड़ सकता है ।  कांग्रेस ने यदि संविधान के बाहर जाकर काम करने की कोशिश की तो जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया और यदि यही गलती भाजपा करेगी तो उसे भी सत्ता से बाहर जाना ही पड़ेगा ।  साम,दाम ,दंड और भेद एके सीमा तक ही काम आते हैं। देश के लिए ' एक देश एक चुनाव ' उतना आवश्यक नहीं है जितना कि  'एक देश एक दाम ' आवश्यक है ।  देश में किसानों की फसल के दाम का मामला हो या देश के बेरोजगारों को रोजगार दिलाने का मामला एकसाथ चुनाव करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। सरकर और सरकारी पार्टी बार-बार मंदिर-मस्जिद करके देश की समस्याओं से बचकर नहीं निकल सकती।
@ राकेश अचल   

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

संसद में टीशर्ट ,जार्ज सोरेस और धनकड़

 

संसद में इन दिनों तमाशा ही तमाशा चल रहा है ,काम हो नहीं रहा। काम  होगा भी नहीं ,क्योंकि सरकार कहती है कि उसके पास तमाम विधेयक पारित करने के लिए पर्याप्त संख्या बल है। संसद के दोनों सदनों में जो कुछ हो रहा है उसमें से बहुत कुछ अप्रत्याशित भी है और बहुत कुछ प्रायोजित भी। संसद की गरिमा की फ़िक्र किसी को नहीं है।  यदि आप संसद की कार्रवाई देखते हों तो आपको पता होगा की संसद के दोनों सदनों में भाजपा,कांग्रेस और शेष विपक्ष के सदस्यों का आचरण कैसा है ।  संसद चलाने वालों का आचरण कैसा है ?

सबसे पहले लोकसभा की बात करें। लोकसभा में हंगामा जारी है ,क्योंकि सरकार ऐसा चाहती है ।  सरकार कांग्रेस के और विपक्ष के दूसरे दलों के सांसदों के प्रश्नों के उत्तर नहीं देना चाहती है।  संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू को और कुछ नहीं तो विपक्ष के नेता राहुल गांधी की टीशर्ट  पर ही आपत्ति है ।  उनका मानना है कि  टीशर्ट पहनकर संसद में आने से सदन की गरिमा गिरती है। किरेन का ये तर्क आपके गले उतरता हो तो अलग बात है ,लेकिन मेरे गले तो नहीं उतरता। संसद के किसी भी सदन में अभी तक कोई ड्रेस कोड नहीं है ,क्योंकि संसद संघ की शाखा नहीं बल्कि देश भर   के अलग-अलग हिस्सों से चुनकर आने वाले जन प्रतिनिधियों का मंच है ।  सबकी अलग-अलग वेश-भूषा है। लेकिन किरेन ये नहीं समझते।

लोकसभा में ही लोकसभा के अध्यक्ष अडानी या अम्बानी का जिक्र आते ही भड़क जाते है ।  वे कहते हैं कि  अडानी या अम्बानी सदन के सदस्य नहीं है इसलिए उनका नाम सदन के भीतर नहीं लिया जा सकता ,लेकिन दूसरी तरफ लोकसभा अध्यक्ष को अमेरिका के जार्ज सोरोस का नाम लेकर कांग्रेस के नेताओं पर हमला किये जाने से कोई आपत्ति नहीं है। मुमकिन है की लोकसभा अध्यक्ष को लगता हो की जार्ज सदन के सदस्य हैं इसलिए उनके नाम का उल्लेख किया जा सकता है। सत्तारूढ़ दल विपक्ष के किसी भी आरोप पर,सवाल पर कुछ बोलने के बजाय बेसिर-पैर के मुद्दे उठाकर हर सवाल से बचने की कोशिश में लगा हुआ है ,यदि ऐसा न होता तो सदन में न राहुल की टीशर्ट पर सवाल उठते और न जार्ज सोरोस और कांग्रेस के रिश्तों पर।

अब चलिए राज्यसभा मे।  यहां तो विपक्ष ने सभापति जगदीप धनकड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर ही दिया है।  जाहिर है कि  विपक्ष के सब्र का बांध टूट गया है ,अन्यथा सभापति का इतना मान तो होता है कि  कोई उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव न लाये। सभापति सबके होते हैं, होना चाहिए ,लेकिन धनकड़ सबके नहीं हैं ,वे भाजपा के जीवनव्रती सदस्य बने रहना चाहते हैं।  वे शायद भूल गए हैं कि  वे अब बंगाल के राज्य पाल नहीं बल्कि राजयसभा के सभापति हैं। राजयसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह ने कहा भी है कि  उन्होंने धनकड़ जैसा पक्षपाती  सभापति अपने पूरे जीवनकाल में नहीं देखा।  मै एक साधारण पत्रकार हूँ लेकिन मैंने भी धनकड़ जैसा सभापति अपने जीवनकाल में नहीं देखा।

सदन में भाजपा मणिपुर  पर चर्चा  नहीं कर रही। बांग्लादेश से बिगड़ते रिश्तों पर बहस नहीं कर रही ,उसका प्रिय विषय जार्ज सोरोस हैं।जॉर्ज सोरोस को लेकर भाजपा हमलवार है और कांग्रेस पर सोरोस से संबंध रखने का आरोप लगाया है. पार्टी ने इस मुद्दे पर चर्चा कराने की मांगकी जिससे राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. भाजपा  का कहना है कि कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी उस संगठन से जुड़ी हैं, जो सोरोस से फंड लेती हैं।  यही नहीं, पार्टी का आरोप है कि मोदी सरकार को कमजोर करने के लिए कांग्रेस ने सोरोस के साथ हाथ मिलाया है। भाजपा को पता है कि  कांग्रेस ने किस किस से हाथ मिला रखा है ,लेकिन उसे ये नहीं पता कि  मणिपुर क्यों जल रहा है ? बांग्लादेश क्यों भारत से मुठभेड़ ले रहा है ?

आप कहीं लिखकर रख लीजिये कि  भाजपा संसद के शीतकालीन सत्र को सुचारु रूप से चलने की कोई कोशिश करेगी ही नहीं और ठीकरा विपक्ष के सर फोड़कर अपनी जिम्मेदारी से बचकर निकल भागेगी। दोनों सदनों के सभापति सदन को सर्वानुमति से चलने में नाकाम साबित हो चुके है।  संसदीय कार्यमांत्रि नाकाम हो चुके हैं और प्रधानमंत्री की और से इस दिशा में कोई कोशिश की नहीं गयी है ।  वे कोशिश करेंगे भी नहीं,क्योंकि उनका विपक्ष के साथ संवाद ही नहीं है।  प्रधानमंत्री संसद छोड़कर प्रयाग में महाकुम्भ की तैयारियों का जायजा लेने पुराने अलाहबाद जाएंगे किन्तु  सदन में शांति स्थापना के लिए प्रकट नहीं होंगे।

बहरहाल सांसद में तमाशा जारी है।  राजयसभा  में सभापति धनकड़ साहब के खिलाफ भले ही विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव पारित न हो लेकिन उनके लत्ते तो लिए जायेंगे है ।  धनकड़ के लत्ते लिए जाने का मतलब है सरकार के लत्ते लिए जाना। भाजपा और पूरी सरकार की कोशिश सदन चलाने की नहीं बल्कि आईएनडीआईए गठबंधन को तोड़ने की है। सरकार ये कर भी सकती है ,क्योंकि सरकार और सरकारी पार्टी को तोड़फोड़ का पर्याप्त अनुभव है ।  पिछले दस साल छह महीने में सरकार और सरकारी पार्टी ने अनेक क्षेत्रीय दलों को तोड़ा है ,अनेक जनादेशों को खरीदा और बेचा है।

मेरी सहानुभूति विपक्ष के साथ नहीं बल्कि सत्तापक्ष के साथ है ।  प्रधानमंत्री के साथ है क्योंकि वे चाहकर भीं प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की तरह सर्वप्रिय नेता  नहीं बन पाए।  वे अपनी सरकार को सबको साथ लेकर चला भी नहीं  पा रहे हैं। वे एक लंगड़ी सरकार के प्रधानमंत्री हैं। उनके पास अपना संख्या बल नहीं है। वे बैशाखियों के सहारे सरकार चला रहे हैं। एक विकलांग सरकार के मुखिया से ज्यादा अपेक्षा करना भी उनके प्रति अन्याय है। प्रधानमंत्री   जी जितना कर पा रहे हैं उतना कम नहीं है। वे दया के पात्र हैं। क्योंकि देश का विपक्ष उनके साथ नहीं है ।  देश की अकलियत उनके साथ नहीं है।  वे टीशर्ट से नफरत करते हैं। आदि-आदि। मेरा विपक्ष से अनुरोध है कि  वो प्रधानमंत्री जिको ज्यादा परेशान न करे ।  वे 75  साल के होने वाले हैं। उन्हें महाराष्ट्र  के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव भी जीतना है। उन्हें सदन की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया जाये तो बेहतर है।  

राहुल गांधी की टीशर्ट पर आपत्ति और जार्ज सोरोस से कांग्रेस के रिश्तों को मुद्दा बनाने से यदि लंगड़ी सरकार का भला हो सकता है तो जरूर होना चाहिए,क्योंकि इन दोनों मुद्दों से कांग्रेस का तो कुछ बुरा होना नहीं है ।  कांग्रेस का तो जितना बुरा होना था वो हो चूका । और बचा-खुचा आने वाले दिनों में आईएनडीआईऐ के विघ्नसंतोषी  घटक खुद कर देंगे। कांग्रस सत्ता में नहीं है और 2029  तक लोकसभा में कोई माई का लाल कांग्रेस से लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद छीन नहीं सकता। जय श्रीराम

@ राकेश अचल

सोमवार, 9 दिसंबर 2024

मध्यप्रदेश में IAS अफसरों का तबादला

  मध्यप्रदेश में देर रात बड़े पैमाने पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अफसरों का तबादला हुआ है। 15 अधिकारियों को इधर से उधर किया गया है। 


सोमवार, 18 नवंबर 2024

संकट के बादलों में फंसे सुखबीर बादल

  

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष पद से सुखबीर बादल के इस्तीफे की ख़ास चर्चा  नहीं  हुई क्योंकि इस समय ये क्षेत्रीय दल पंजाब और देश की राजनीति मेंपहले की तरह प्रासंगिक नहीं रहा। देश में भी इस समय सुर्ख़ियों में महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधान सभा चुनावों का भी जोर है। लेकिन अकालियों की राजनीति में आज भी यही एक ऐसा क्षेत्रीय दल है जिसे पंजाबियों का अलमबरदार कहा जा सकता है। अपनी स्थापना के 104  साल पूरे करने वाले इस दल के सबसे बुरे दिन शायद आजकल ही हैं। खबर आई है कि अकाल तख्त की ओर से 'तनखैया'  घोषित किए जाने के करीब 2 महीने बाद पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल  ने शिरोमणि अकाली दल  के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है।

 पार्टी के वरिष्ठ नेता दलजीत सिंह चीमा ने बताया कि बादल ने पार्टी की कार्यसमिति को अपना इस्तीफा सौंप दिया।  बादल के इस्तीफे से नए पार्टी प्रमुख के चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। मजे की बात ये है कि पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से कुछ दिन पहले बादल ने खुद अकाल तख्त के जत्थेदार से धार्मिक कदाचार के आरोपों में उन्हें सजा सुनाने का आग्रह किया था।  सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने 2007 से 2017 तक अकाली दल और उसकी सरकार की ओर से की गई 'गलतियों' के लिए बादल को 30 अगस्त को 'तनखैया' घोषित किया था। सुखबीर बादल पर आरोप है कि बादल की कथित गलतियां  'पंथ की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाने और सिख हितों को नुकसान पहुंचाने' वाली थीं।  इसमें 2015 की बेअदबी की घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने में विफलता और 2007 के ईशनिंदा मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को माफ करना शामिल है।

पंजाब में  शिरोमणि अकाली दल पर  1996 से ही बादल परिवार  काबिज है। पहले सुखबीर सिंह बादल के पिता स्वर्गीय प्रकाश सिंह बादल दल के अध्यक्ष हुआ करते थे ,वर्तमान में पार्टी के अध्यक्ष पद .पर सुखबीर सिंह बादल थे।  बादल को अपने नेतृत्व के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पार्टी का चुनावी प्रभाव तेजी से कम हो रहा है. साल 2022 से विधानसभा चुनावों में यह रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जब पार्टी पंजाब में सिर्फ तीन सीटें ही जीत पाई. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अकाली दल का वोट प्रतिशत  घटकर 13.4 प्रतिशत रह गया, जो 2019 में 27.5 प्रतिशत था।  साथ ही अकाली दल राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से सिर्फ एक पर जीत हासिल कर पाया ।  आज पंजाब में शिरोमणि अकालीदल कि हैसियत  उत्तर प्रदेश में बसपा कि हैसियत जैसी  हो चुकी है।

आमतौर पर ये माना जाता है कि सुखबीर सिंह बादल, उनके पिता प्रकाश सिंह बादल और यहां तक कि सुखबीर के दादा का भी सिस्टम से लड़ने का इतिहास रहा है।  सुखबीर के कार्यकाल में राज्य में सड़क नेटवर्क, अतिरिक्त बिजली आदि के मामले में उल्लेखनीय विकास हुआ।  जब 2012 में अकाली-भाजपा गठबंधन ने पंजाब में दोबारा अपना कार्यकाल पूरा करके इतिहास रचा, तो इसका सारा श्रेय सुखबीर को ही दिया गया।  

सुखबीर सिंह बादल को राजनीती विरासत में मिली है। सुखबीर के पिता प्रकाश सिंह बादल शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष और पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे ।  वे जनता शासन में केंद्र में मंत्री भी रहे। प्रकाश सिंह बादल ने अपना पहला विधानसभा चुनाव वर्ष 1957 में जीता था। 1969 में वह दोबारा विधानसभा चुनाव में जीत गए। वर्ष 1969-1970 तक उन्होंने सामुदायिक विकास, पंचायती राज, पशुपालन, डेरी आदि से संबंधित मंत्रालयों में कार्यकारी मंत्री के रूप में कार्य किया। प्रकाश सिंह बादल 1970–71, 1977–80, 1997–2002 में पंजाब के मुख्यमंत्री और 1972, 1980 और 2002 में नेता विपक्ष रह चुके थे। मोरारजी देसाई के शासन काल में वह सांसद बने। उन्हें केन्द्रीय मंत्री के तौर पर कृषि और सिंचाई मंत्रालय का उत्तरदायित्व सौंपा गया था। इनका कार्यकाल 1 मार्च 2007 से 2017 तक रहा है

अपने पिता के सामने ही  साल 1996 में  सुखबीर ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की थी, जब वे फरीदकोट से सांसद चुने गए थे। 1999 में वे इस सीट से हार गए और 2001 में राज्यसभा सांसद के रूप में संसद गए।  उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया।  2004 में सुखबीर सिंह बाद ने फरीदकोट से फिर जीत दर्ज की। पांच साल बाद वे जलालाबाद उपचुनाव जीतकर राज्य की राजनीति में वापस आए और अगस्त 2009 से मार्च 2017 तक पंजाब के उपमुख्यमंत्री रहे  अकाली दल के अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान अकाली दल और भाजपा गठबंधन ने 2012 के चुनावों में जीत हासिल की, लेकिन बाद में दोनों दलों का गठबंधन टूट गया।  अकाली दल के चुनावी ग्राफ में गिरावट के साथ उन्हें अपने नेतृत्व के लिए लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा और पार्टी में कई विभाजन हुए। साल 1920  में गठित अकाली दल इस समय अपने सबसे बुरे दौर में है ।

अकाली दल की दुर्दशा के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को भी जिम्मेदार माना जाता है। भाजपा ने जिस किसी क्षेत्रीय दल के साथ सत्ता में भागीदारी की उसे बाद में बहुत नुक्सान भी पहुंचाया।  राज्य की सत्ता इस समय आम आदमी पार्टी के पास है। अब देखना है कि क्या ये दल एक बार फिर अपने पांवों पर खड़ा हो सकता है या हमेशा के लिए इतिहास बनकर रह जाएगा ?

@ राकेश अचल

रविवार, 17 नवंबर 2024

' मोशन ' और ' इमोशन ' के बीच चुनाव

  

मेरी कोशिश है कि राजनीति पर ज्यादा न लिखा जाये,लेकिन मेरी कोशिश को राजनीति ही हर बार नाकाम कर देती है। देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी झारखंड और महाराष्ट्र में ताबड़तोड़ रैलियां करने के बाद जलता हुआ मणिपुर छोड़कर नाइजीरिया के दौरे पर निकल गए हैं। वे  नाइजीरिया के राष्‍ट्रपति अहमद टिनूबू के न्‍यौते पर पहली बार इस देश के दौरे पर हैं. नाइजीरिया और भारत के रिश्‍ते काफी पुराने है।

नाइजीरिया की आजादी के बाद सितंबर 1962 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नाइजीरिया का दौरा किया. उसके 40 साल बाद वर्ष 2002 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कॉमनवेल्‍थ देशों की मीटिंग में शामिल होने नाइजीरिया पहुंचे थे. इसके बाद 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नाइजीरिया का दौरा किया था. अब 2024 में  प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी यहां के दौरे पर हैं। हमारे प्रधानमंत्री की प्राथमिकताएं हम या आप नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री तय करते है।  वे नाइजीरिया जाएँ या कहीं और ,आप और हम सवाल नहीं कर सकते ।  हम और आप उनसे नहीं पूछ सकते की वे दुनिया घूम रहे हैं लेकिन मणिपुर क्यों नहीं जाते ?

बहरहाल बात देश के दो राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों की है ।  इस चुनाव में मुद्दे पहले दिन से नदारद है।  चुनाव नेताओं ने एक-दूसरे के ऊपर विष वमन से जीतने की कोशिश की ।  बीच में बांटो और काटो भी चला ,लेकिन अब चुनाव ' मोशन ' और ' इमोशन ' के बीच झूल रहा है। चुनाव में ' इमोशन कार्ड ' का इस्तेमाल बुरी बात नहीं है, लेकिन वोट कबाड़ने के लिए मतदाता के साथ इमोशनली खिलवाड़ बुरी बात है। नेता तो मंजे हुए खिलाडी होते है।  वे हर तरह से खेलना जानते हैं। उन्हें जनता के इमोशन से कोई लेना-देना नहीं। बस उनका  मोशन बना रहना चाहिए।

महाराष्ट्र की बात करते है।  यहां स्वर्गीय बाला साहब ठाकरे की राजनीतिक विरासत तीन हिस्सों में बंटी हुई है ।  ठाकरे की विरासत का एक हिस्सा उद्धव ठाकरे के पास है ।  एक के स्वामी बाला साहब के भतीजे राज ठाकरे है।  और तीसरे  हिस्से के मालिक  महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं। उद्धव और एकनाथ शिंदे तो बाला साहब की विरासत के सहारे सूबे के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन बेचारे राज ठाकरे के हिस्से में कुछ भी नहीं आय्या। राज भाई साहब महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बनाकर पिछले 16  साल में विधानसभा की 288  सीटों में से अधिकतम 23  सीटों पर कब्जा कर पाए।  उनकी ये ताकत उन्हें मुख्यमत्री नहीं बना सकती।

महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा के चुनावों के पहले दौर में आरोप-प्रत्यारोप चले, दूसरे दौर में गड़े मुर्दे उखाड़े गए और अब अंतिम चरण मरण ' इमोशन ' का सहारा लिया जा रहा है।  राज ठकरे हों या पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख के बच्चे, सबके सब मतदाताओं को इमोशनली ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं। आदर्श आचार संहिता में इमोशन के इस्तेमाल पर शायद रोक नहीं  है और रोक होती भी तो केंचुआ किसी का क्या बीएड लेता ? केंचुआ सरकार के गले में लिपटकर रहने वाला नाग है। जो किसी को काटता नहीं है केवल  फुफकार कर डराता है।

चुनाव जीतने के लिए इमोशन का इस्तेमाल जीवन के नौवें दशक में चल रहे माननीय शरद पंवार साहब को भी करना पड़ रहा है ।  उन्होंने भी मतदाताओं से कहा है कि  ये उनके  जीवन का अंतिम चुनाव है। शरद पंवार साहब से जुड़े लोगों के इमोशन को केंद्रीय गृहमंत्री माननीय अमित शाह साहब पहले ही अपने श्रीमुख से आहत कर चुके हैं। इलेक्शन और इमोशन का आपस में बड़ा ही गहरा संबंध है।  युगों तक कांग्रेस ने इमोशन का कार्ड खेला,अब भाजपा खेल रही है।  कल कौन खेलेगा पता नहीं।

इमोशन का इस्तेमाल करने के लिए आंसू,आहें ,आवश्यक होतीं हैं। इनसे ही मतदाता द्रवित होता है ।  कभी-कभी छवियां भी इमोशन उभारने के काम आतीं हैं।  जैसे देश प्रियंका वाड्रा में स्वर्गीय इंदिरा गाँधी की झलक देखता है वैसे ही तमाम मराठी राज ठाकरे में बाला साहब की झलक देखते हैं। लेकिन सियासत में सब कुछ झलक  से नहीं मिलता ,काम करना पड़ता है ।  अपने आपको प्रमाणित करना पड़ता है। जो अभी तक झलक  वाले नेता प्रमाणित नहीं कर पाए हैं।  लेकिन जाने-पहचाने नेताओं की कार्बन कॉपी लगने वाले नौजवान नेताओं के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है ,फिर चाहे वो राज ठाकरे हों या प्रियंका वाड्रा।

आने वाले छह दिन में ये छवियां ये इमोशन राजनीति को कितना प्रभावित कर पते हैं ? ये देखना दिलचस्प होगा। नतीजा तो खैर 23  नवंबर को ही सामने आएगा ,लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जी की बेफिक्री बताती है कि  उन्होंने हरियाणा की तरह महाराष्ट्र और झारखण्ड का रण जीतने की पूरी तैयारी कर ली है। प्रधानमंत्री इन दोनों राज्यों के संभावित चुनाव नतीजों को लेकर भी बेफिक्र हैं और मणिपुर की दशा-दुर्दशा को लेकर भी। उन्हें पता है की विपक्ष को अभी तक लड़ना नहीं आया है।

@ राकेश अचल 


शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

अब चुनाव में संभाजी महाराज की ' एन्ट्री '

 

आजादी के बाद देश को सबसे प्रभावी नारा ' बंटोगे तो कटोगे ' नारा देने वाली भाजपा पर हमें गर्व है ।  भाजपा हालांकि ये नारा देकर आपस में ही बंटती और कटती नजर आ रही है ,केवल और केवल एक  कुर्सी भाजपा की युति को जैसे -तैसे बचाये हैं। कुर्सी के इस  महासंग्राम में माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने अब संभाजी महाराज की ' एन्ट्री ' भी   करा  दी  है जो कभी चुनावी और दलगत राजनीति में नहीं फंसे। उनके जमाने में न लोकतंत्र था और न ठोकतंत्र।

प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने महाराष्ट्र की जनता को याद दिलाया कि उनकी सरकार ने तो संभाजी महाराज के हत्यारे औरंगजेब के औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर किया और बाला साहब ठाकरे की इच्छा पूरी की ,लेकिन महामना मोदी भूल गए कि उन्होंने ही बाला साहेब ठाकरे के  बेटे उद्धव ठाकरे की पीठ में औरंगजेब की तरह न सिर्फ छुरा भौका बल्कि ठाकरे की पार्टी के दो  टुकड़े  भी करा दिए। मोदी जी का ये कहना एकदम सही है कि उन्होंने हिंदुत्व के मामले में कोई समझौता नहीं किया। वे समझौता करते भी तो किससे करते ? उद्धव ठाकरे ने उनसे समझौता करके देख तो लिया ,उन्हें आखिर क्या मिला विश्वासघात के अलावा ।

देश को गर्व है कि माननीय मोदी जी देश में कोई भी चुनाव मुद्दों पर नहीं होने देते ,वे इसके लिए गड़े  मुर्दे खोज लाते है।  उन्होंने ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे पहले डॉ अम्बेडकर का इस्तेमाल किया,फिर वे स्वातंत्र्य वीर सावरकर को ले आये और अब उनके पास संभाजी महाराज है।  आप जनाते ही होंगे कि संभाजी महाराज छत्रिपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे और उनका वध औरंगजेब ने करा दिया  था।  मोदी जी का आरोप है कि कुछ लोग औरंगजेब को मसीहा मानते हैं। मोदी जी किसी को ये नहीं बताते कि पिछले दिनों महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज की प्रतिमा कैसे गिरी  थी  और उसके  निर्माण  में कितना  भ्र्ष्टाचार  हुआ  था  ?  
महाराष्ट्र में किसकी सरकार बनेगी ये तो मै  नहीं जानता लेकिन मुझे इतना पता है कि माननीय मोदी जी विपक्ष के ऊपर जितने भी व्यंग्य बाण  छोड़ रहे हैं वे निशाने पर लगने के बजाय उनकी अपनी पार्टी और युति को जख्मी बना रहे हैं। उनके राष्ट्रदूत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे से महाराष्ट्र की जनता ' बंटेगी या कटेगी ' इसका तो पता नहीं है लेकिन इस नारे से महायुति जरूर कटती-बंटती दिखाई दे रही है ।  युति में शामिल घटक ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के भाजपाई भी इस नारे से आतंकित हैं। उन्हें डर है कि ये नारा कहीं उलटा न पड़ जाए।इस आशंका-कुशंका के बावजूद नारा इस्तेमाल किया जा रहा है ,हालाँकि मोदी जी अपने लिए नया नारा ' एक रहोगे तो सेफ रहोगे गढ़ लिया है ,लेकिन  ये नारा उतना धारदार नहीं है जितना की योगी जा का नारा है।
लगता है कि मोदी जी और उनकी भाजपा महाराष्ट्र की जनता के मिजाज को सही तरीके से भांप नहीं पायी है ,अन्यथा क्या मजाल थी उप मुख्यमंत्री अजित पंवार की ,क्या मजाल थी पंकजा मुंडे की या क्या मजाल थी पूर्व मुख्यमंत्री  अशोक चव्हाण की जो वे ' बंटोगे तो कटोगे ' के नारे का विरोध  करते और उसे अप्रासंगिक बताते।  मोदी जी जिस संविधान की लाल पोथी   को राहुल गांधी के हाथों में देखकर भड़क जाते हैं अब उसी संविधान का हवाला देकर आरक्षण का मुद्दा उठा रहे हैं। ये संविधान किसी हेडगेवार या गोलवलकर का बनाया हुया नहीं है ,इसे डॉ भीमराव आंबेडकर ने बनाया था जो किसी हिंदूवादी संगठन के सदस्य नहीं थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था।
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव हों या झारखंड विधानसभा के चुनाव भाजपा मुद्दों के बजाय मुर्दों  के साथ ही प्रवर्तन निदेशालय के भरोसे है।प्रवर्तन  निदेशालय यानि  ईडी हो या केंचुआ यानि केंद्रीय चुनाव आयोग भाजपा के पक्ष में लगातार सक्रिय है ।  ईडी छापामारी कर रही है और केंचुआ विपक्षी नेताओं के हेलीकाप्टरों की सघन जांच ,ताकि भाजपा पर कोई आंच न आये। भाजपा के सहयोगी इन संवैधानिक संगठनों को सक्रियता से भाजपा को इन  दोनों राज्यों में सत्ता मिलना लगभग तय है किन्तु अभी मशीनों से जनादेश का आना तो बाक़ी है। हमारे यहां कहा जाता है कि - का वर्षा जब कृषि सुखानी ? महाराष्ट्र और झारखण्ड में वोटों की खेती सूख चुकी है। अब उसे सींचने  का कोई लाभ शायद नहीं होने वाला ,लेकिन याद रखिये कि -' मोदी हैं ,तो मुमकिन है। कुछ भी मुमकिन है।
मेरा दृढ विश्वास है कि यदि भाजपा झारखंड और महाराष्ट्र की सत्ता में आती  है तो देश की आजादी के बाद ' बटोगे तो कटोगे ' नारा पहला ऐसा नारा होगा जो आजादी के पहले महात्मा गाँधी द्वारा दिए गए ' करो या मरो ' के नारे जैसा  असरदार  साबित  माना  जाएगा । इस नारे  की कामयाबी  पर ही मोदी जी का ,शाह  जी का ,योगी  जी का और महामना  मोहन  भागवत  साहब का भविष्य  टिका  है।  भारत  का भविष्य  तो भगवान  के भरोसे पहले भी था और आज भी है। संभाजी महाराज,वीर सावरकर, डॉ अम्बेडकर ,अडानी आदि  भाजपा पर कृपा  करें । राहुल गांधी अपनी लाल किताब के भरोसे चुनाव जीत जाएँ तो जीत जाएँ ,वरना उन्हें मशीन  और मशीनरी के सामने  तो हारना  ही है।
@ राकेश अचल 

मंगलवार, 12 नवंबर 2024

नए सीजेआई के सामने पुरानी चुनौतियाँ

भारत के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना के सामने सभी चुनौतियाँ पुरानी  हैं।  देश के 51  वे मुख्यन्यायधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने पहले ही दिन एक मामले में पैरवी कर रहे वकील को झडपी देकर ये संकेत दे दिए हैं कि उनकी कार्यशैली निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ से कैसे और कितनी अलग होगी। नए सीजेआई की सबसे बड़ी चुनौती उनका अल्प कार्यकाल। है । सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना का बतौर मुख्य न्यायाधीश, कार्यकाल छह महीने का होगा. वह अगले साल 13 मई 2025 को रिटायर हो रहे हैं।

हमारे देश में एक कहावत है कि  - ' पूत के पांव पालने में दिखाई देने लगते हैं। सीजेआई खन्ना के बारे में ये कहावत कितनी लागू होती है ये जानने के लिए आपको उनके पहले दिन का काम काज देखना चाहिए। आपको पता है कि  जस्टिस खन्ना साहब की भी अपनी एक विरासत है जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ की तरह ।  चंद्रचूड़ साहब के पिता देश के सीजेआई रह चुके थे ,उनके नाम सबसे अधिक समय तक इस पद रहने का कीर्तिमान दर्ज है ,जबकि जस्टिस खन्ना के पितापिता देवराज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे है।    जस्टिस संजीव खन्ना के  चाचा  देश के सीजेआई बनते-बनते रह गए थे,नए सीजेआई संजीव कहना साहब  जस्टिस एचआर खन्ना के भतीजे हैं. उनके चाचा ने एडीएम  जबलपुर के फैसले में असहमति जताई थी।ऐसी लोकमान्यता है कि  जसिटस एच आर  खन्ना के इस फैसले से नाराज सरकार ने उन्हें सीजेआई नहीं बनाया था और जस्टिस एचआर खन्ना ने  इस्तीफा दे दिया था।
नए सीजेआई जस्टिस  जस्टिस संजीव खन्ना को   201 9 में उच्चतम न्यायालय का  जज बनाया गया था। पहले ही दिन वो अपने चाचा की कोर्ट में बैठे और यहीं जस्टिस एचआर खन्ना की तस्वीर भी है। नए सीजेआई जस्टिस खन्ना शांत, गंभीर और सरल स्वभाव के हैं।  पब्लिसिटी से दूर रहते हैं ,लेकिन समस्या ये है की क्या मीडिया उन्हें पब्लिसिटी से दूर रहने देगी ।  मीडिया ने पहले ही दिन नए सीजेआई ने एक मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अभिभाषक मैथ्यूज नेदुमपरा को झिड़क दिया और कहा की वे यहां उनका लेक्चर सुनने नहीं आये है।  वकील साहब की गलती सिर्फ इतनी थी की उन्होंने नए सीजेआई से ये कह दिया की -उच्चतम न्यायालय में केवल अडानी अम्बानी की सुनवाई हो रही है गरीबों की नहीं।वैसे भी इस समय देश कि उच्चतम न्यायालय में भाषण देने वाले वकीलों की संख्या पहले की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है। ये वे  वकील हैं जो सुर्ख़ियों में रहने के आदी हैं  
बहरहाल नए सीजेआई को हकीकत का सामना तो करना ही पडेगा ,क्योंकि अतीत में उच्चतम न्यायालय में जिस तरह से क्रन्तिकारी काम हुआ है या आधे-अधूरे फैसले आये हैं ,उनसे आगे निकलने की जरूरत नए सीजेआई को पड़ेगी ।  सब जानते हैं  कि उच्चतम न्यायालय में 70  हजार से ज्यादा मामले लंबित है।  हालाँकि इस दौरान पुराने सीजेआई जस्टिस डी वाय, चंद्रचूड़ साहब ने उच्चतम न्यायालय को आधुनिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में काफी काम किया।  पुराने सीजेआई जस्टिस चन्द्रचूड़ साहब अपने फैसलों से ज्यादा सुधारों के लिए याद किये जायेंगे। उन्होंने न्याय की प्रतीक प्रतिमा की आँखों से काली पट्टी हटवाई ।  हाथ से तलवार हटवाकर संविधान की प्रति दिलवाई। नए सीजेआई अपने छह माह के कार्यकाल  में कोई नया इतिहास लिख पाएंगे ये कहना और ऐसी धारणा बनाना भी ठीक नहीं।  उन्हें मौजूदा सरकार से टकराव की मुद्रा भी अख्तियार नहीं करना है ,हालाँकि आम धरना है की वे ऐसा कर सकते हैं।
आपको बता दूँ कि  जस्टिस खन्ना 14 साल तक दिल्ली हाईकोर्ट में जज रहे. 2005 में एडिशनल जज और 2006 में स्थायी जज बने ।  जस्टिस संजीव खन्ना 18 जनवरी 2019 को वो भारत के सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में पदोन्नत  किए गए।  उन्होंने सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी के अध्यक्ष पद का कार्यभार 17 जून 2023 से 25 दिसंबर 2023 तक संभाला।  इस समय वे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष हैं और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य भी हैं।
ये तो उनका परिचय था । अब उनके द्वारा अतीत में दिए गए कुछ फैसलों पर भी नजर डाल लीजिये ताकि आप अनुमान लगा सकें की नए सीजेआई जस्टिस खन्ना भविष्य में किस तरह की मुद्रा अख्तियार कर सकते हैं। जस्टिस संजीव खन्ना  बहुचर्चित बिलकिस बानो केस में फैसला देने वाली बेंच में शामिल थे।  उन्होंने केंद्र सरकार की आँखों की किरकिरी बने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत भी दी थी।  उन्होंने केजरीवाल को एक बार अंतरिम बेल थी और बाद भी उन्हें नियमित बेल दी थी। खन्ना साहब वीपीएटी T का सौ फीसदी सत्यापन करने , इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम, आर्टिकल 370 हटाने को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई करने वाली बेंच में जस्टिस संजीव शामिल रहे हैं। .
जस्टिस खन्ना के कम कार्यकाल का उनके भावी कार्यकाल पर कितना असर होगा कहना कठिन है ।  वे चाहें तो इसे इतिहास भी बना सकते हैं और न चाहें तो खामोशी के साथ सेवानिवृत  भी हो सकते है।  वे सौभाग्यशाली हैं कि  उन्हें कम से कम छह माह तो मिल रहे हैं अन्यथा इस देश में ऐसे सीजेआई भी बने हैं जो मात्र   17  दिन ही इस पद पर रह पाए ।  देश के 22  वे सीजेआई जस्टिस कमल नारायण सिंह के नाम सबसे कम दिन सीजेआई रहने का रिकार्ड दर्ज है। देश को उम्मीद है कि  नए सीजेआई अपने पूर्व के सीजेआई से बड़ी और नयी लकीर खींचेंगे। वे किसी को अपने घर आरती उतारने के लिए नहीं बुलाएँगे ।किसी अड्डे पर जाकर अपने फैसलों कि बारे में सफाई नहीं देंगे।   वे उच्चतम न्यायालय को इस छवि से भी बाहर निकलने की कोशिश करेंगे  कि  यहां केवल अडानी और अम्बानी जैसे लोगों के मामलों को ही प्राथमिकता के आधार पर सुना जाता।  उन्हें अपने संक्षिप्त कार्यकाल में  उच्चतम न्यायालय को गरीबों की सुनवाई का मंच बनाने का भी अवसर है हम सब नए सीजेआई के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए उन्हें अपनी शुभकामनाएं देते हैं।
@ राकेश अचल 

सोमवार, 11 नवंबर 2024

नारे के आगे दो नारे,नारे के पीछे दो नारे

  

एक जमाने में फिल्म ' मेरा नाम जोकर ' के   लिए हसरत जयपुरी ने एक पहेलीनुमा गीत लिखा था ' तीतर  के आगे दो तीतर ,तीतर के पीछे  दो तीतर ,बोलो कितने तीतर ? ' आशा भोंसले ने इस गीत को गया था और शंकर जयकिशन ने इसे संगीतबद्ध किया था। ये  बात 1970 की है। आज हम 2024 के आखरी सिरे पर आ गए हैं लेकिन भारतीय राजनीति में जोकरों के लिए तीतर के बजाय नारे पहेलियाँ बन गए है।  ये समझना मुश्किल है की आखिर नारों के आगे,नारों के पीछे कितने नारे हैं और कितने जोकर है।

' मेरा नाम जोकर यदि आज बनाई जाती तो तय है की हसरत जयपुरी साहब को तीतर के आगे दो तीतर गीत के बोल बदलना पड़ते ।  वे लिखते-' नारे के आगे दो नारे, नारे के पीछे दो नारे,आगे नारे ,पीछे नारे ,बोलो कितने नारे ?निश्चित रूप से ये गीत भी लोकप्रिय होता,क्योंकि आज की राजनीति में नेताओं और मुद्दों से ज्यादा  नारे लोकप्रिय हो रहे हैं ,समूची राजनीति इन्हीं नारों पर टिकी है।  जिस दल के पास नारे नहीं ,उसके वारे-न्यारे नहीं। नारे बिना राजनीति आभूषणों बिना नारी जैसी है।

साल के जाते-जाते भारतीय राजनीति को जो सबसे ज्यादा चर्चित और हिंसक नारा मिला ,वो है - बंटोगे  तो कटोगे '। इस नारे के जनक हैं उत्तरप्रदेश के उत्तरदायी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। उनका ये नारा बड़ा ही कटखना है। ये नारा सबसे ज्यादा  पसंद आया राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ को।  संघ ने इस नारे को अपनी दैनिक प्रार्थना-' नमस्ते सदा वतस्ले ' की तरह अंगीकार कर लिया।  सबसे पहले संघ के दो नंबरी नेता दत्तात्रय होंसबोले ने इस नारे के आगे समर्पण किया। उन्हें शायद आत्मग्लानि  हुयी की इतना मारक  नारा उनकी नागपुर की फैक्ट्री में क्यों नहीं गढ़ा गया ? कहते हैं कि योगी के नारे कि गूँज कनाडा में सुनाई दे रही है ।  उनका नारा बंटोगे तो कटोगे अब वैवाहिक निमंत्रण पत्रों पर भी लिखवाया जाने लगा है।

योगी  जी के इस इस नारे की नाव पर सवार होकर  भाजपा हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में उतरी । हरियाणा में तो इस नारे से भाजपा की नाव चुनावी वैतरणी पर कर गयी लेकिन जम्मो-कश्मीर में डूब गयी।  जम्मू-कश्मीर में कुछ और चला। इस खंडित सूबे में न कोई कटा और न कोई बटा ,लिहाजा भाजपा के हाथ सत्ता  नहीं लगी। लेकिन न भाजपा निराश  हुयी और न माननीय योगी जी।  भाजपा,संघ और योगी जी इसी नारे को लेकर महाराष्ट्र और झारखड विधानसभा के चुनाव में जा कूदे। लेकिन यहां योगी की के इस नारे को अंगीकार नहीं किया गया। भाजपा के सहयोगी एनसीपी के अजित पंवार ने ही इस नारे का विरोध कर दिया ।  उद्धव ठाकरे की शिव सेना भी इस नारे के खिलाफ मुखर हुई तो  प्रधानमंत्री  श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को दखल करना पड़ा।

माननीय मोदी जी तो राजनीती में नए नारों के जनक हैं,हालाँकि उनसे पहले श्रीमती इंदिरा गाँधी ' गरीबी हटाओ ' जैसे अति लोकप्रिय नारे लगा चुकी थी और जनता से लगवा चुकी थीं ,लेकिन न गरीब हटे और न गरीबी । उलटे आज देश में 85 करोड़ गरीब मोदी सरकार के हिस्से में है।  सबको पांच किलो अन्न मुफ्त में देना पड़  रहा है ।  मोदी जी भी इंदिरा जी के बताये रस्ते पर चलकर न गरीबी का उन्मूलन कर रहे हैं और न गरीबों का ।  हालांकि उनका दावा रहता है की उनकी सरकार ने 10 साल में 25 करोड़ गरीबों को गरीबी की रेखा से बाहर निकाला है।

बहरहाल बात नारों की चल रही थ।  योगी जी के नारे को महाराष्ट्र  में लड़खड़ाता देख मोदी जी इसी नारे को नए पैकिंग में लेकर नमूदार हुए।  उनका नारा है -' एक रहोगे तो सेफ रहोगे '। मोदी जी का नारा गांधीवादी नारा है या गोलवलकरवादी   नारा अभी तक कम से कम मै तो तय नहीं कर पाया हूँ ।  महाराष्ट्र की जनता इस नारे से कितनी प्रभावित हुयी है ये भी कहना कठिन है। मोदी जी के इस नारे के जबाब में उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने कहा कि महाराष्ट्र तभी तक सेफ है जब तक की यहां भाजपा सत्ता से बाहर रहेगी। झारखण्ड में भी कमोवेश मोदी जी और योगी जी का नारा कारगार होता नहीं दिखाई दे रहा। भविष्य में हो जाये  तो मै इसकी गारंटी नहीं दे सकता या ले सकता।

योगी जी के नारे के जबाब में उत्तरप्रदेश के उत्तरदायी समाजवादियों ने  एक नया नारा गढ़ा है। हर नारे का अपना व्याकरण है ।  अपनी धार है। अपना असर है।  आज की सियासत में मुद्दे नहीं बल्कि नारे प्रधान होते हैं। बिना नारों के सियासत एक कदम आगे नहीं बढ़ सकती। जो राजनीतिक दल नया नारा नहीं गढ़ सकता उसे सत्ता भी आसानी से हासिल नहीं हो सकत।  मेरा नाम जोकर ब्रांड राजनीति में जोकरों की और नारों की कोई कमी नहीं है  ।  हर दल में जोकर है।  हर दल के अपने नारे हैं। नारे लगाने वाले है। नारे लगवाने वाले हैं। यानि जिधर देखो उधर केवल नारे ही नारे नजर आते हैं ,सुनाई देते है।  नेता और जनता मुद्दों को भूल नारों के भंवर जाल में फंस गयी है।

कभी-कभी मुझे लगता है कि इस देश को डिक्शनरी के एक और नए संस्करण की जरूरत है।  इस डिक्शनरी में केवल और केवल ' नारे ही नारे समाहित किये जाएँ ।  पूरब से पश्चिम तक के नारे । कन्या कुमारी से कश्मीर तक के नारे ।  हिंदी नारे,पंजाबी नारे ,उड़िया नारे ,गुजराती नारे ,तमिल नारे ,मलयाली नारे ,तेलगू नारे ,मराठी नारे ,झारखंडी नारे। हर दल का एक नारा होना ही चाहिए। ' बिन नारा सब सून ' है भाई !नारा है तो सियासत है और सियासत है तो नारे हैं। नारों का भी वर्गीकरण किया जाना चाहिये ।  जैसे स्थानीय  नारे,प्रांतीय  नारे और राष्ट्रीय नारे। अंतर्राष्ट्रीय नारों की एक अलग श्रृंखला हो सकती है ।  जैसे पिछले दिनों अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान तरह -तरह के नारे सुनने में आये थे ।

आजादी के बाद  की पीढ़ी को पढ़ाया गया था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन 2014  के बाद मिली असली आजादी [ बकौल कंगना  रनौत ]के बाद की पीढी को पढ़ाया जा हां है कि - भारत एक नारा प्रधान देश है।  कृषि उत्पाद तो हम आयात भी कर सकते हैं लेकिन हमें नारे एकदम  स्वदेशी चाहिए।  आत्मनिर्भरता के लिए सब कुछ स्वदेशी होना चाहिए ,खास तौर पर सियासी नारे। इस देश को नारा आधारित राजनीति से कब मुक्ति मिलेगी ? ये मै तो नहीं बता सकता। कोई ज्योतिषी बता सके तो उसके मुंह में घी-शक़्कर। वैसे आपको याद होना चाहिए कि नारा हर युग में प्रभावी रहा है। आजादी के पहले महात्मा गाँधी की आंधी के समय ' करो या मरो ' के नारे ने जनता को एक किया था। अंग्रेजों को खदेड़ा था।  ये शाकाहारी नारा था। अब देखना है कि योगी जी का नारा इस देश से मुसलमानों ,बांग्लादेशी,मयंमार के घुसपैठियों को खदेड़ पायेगा या नहीं ? जय श्रीराम ।

@ राकेश अचल 

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