देश केंद्रीय गृहमंत्री माननीय अमितशाह द्वारा डॉ भीमराव अम्बेडकर के बारे में की गयी कथित टिप्पणी को लेकर खामखां परेशान है, शाह का इस्तीफा मांग रहा है। अरे देश को तो खासतौर पार आंबेडकर वादियों को तो अमितशाह और उनकी सरकार की जय-जय करना चाहिए ,की उन्होंने जितना डॉ भीमव आंबेडकर के लिए किया उतना देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नहीं किया। हमारे अमित भाई तो सपने में भी डॉ आम्बेडकर का अपमान नहीं कर सकते । वे तो डॉ आंबेडकर को मोदी से बड़ा नेता मानते हैं शायद !
संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर को न मैंने देखा है और न माननीय अमित शाह साहब न। जब मैंने नहीं देखा तो शाह साहब डॉ अम्बेडकर को कैसे देख सकते है। वे मुझसे पांच साल छोटे हैं और डॉ अम्बेडकर हमारे जन्म से तीन साल पहले ही दिवंगत हो गए थे । शाह साहब तो डॉ आंबेडकर के निधन के 8 या 9 साल बाद इस धराधाम पर आये। उन्हें डॉ अम्वेडकर के बारे में उतना ही ज्ञान है जितना संघ की शाखाओ में प्रबोधनों के जरिये उन्हें मिला। फिर भी मुझे यकीन है कि उन्होंने डॉ आंबेडकर के बारे में कम से कम मुझसे तो ज्यादा पढ़ा ही होगा। तभी तो वे डॉ अम्बेदककार का नाम संसद में बार-बार लिए जाने से भड़क गए।
हकीकत ये है कि अमित साह साहब के कानों को केवल मोदी-मोदी की मंगल ध्वनि सुनने की आदत है इसलिए वे कोई दूसरानाम सुन ही नहीं सकते । बर्दाश्त कर ही नहीं सकते, इसीलिए जब बार-बार डॉ अम्बेडकर का नाम लिया गया तो उनके सब्र का बांध टूट गया और वे कह बैठे की -' 'अभी एक फैशन हो गया है. अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर... इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता है.' अमित शाह साहब ने ये शब्द गुस्से में कहे या प्रेम से कहे इसका तो हमें पता नहीं लेकिन जब उनका ये कथन वायरल हुआ और देशव्यापी प्रतिक्रियाएं आने लग्न तो पूरी भाजपा के अधोवस्त्र पीतांबर होने लगे। बेचारी पीआईबी फैक्ट चेक को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अमित शाह के भाषण का क्लिप्ड और फुल वीडियो शेयर करना पड़ा और सफाई देना पड़ी की जानबूझकर शाह साहब के भाषण को काट-छांटकर दिखाया जा रहा है।
अब पीआईबी कहती है तो देश को मान लेना चाहिए की हमारे सम्माननीय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह साहब के साथ अन्याय हुआ ह। उन्होंने तो डॉ आंबेडकर जी के प्रति कुछ कहा ही नही। उनके निशाने पर तो भाजपा और संघ के जन्मजात शत्रु पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। लोकसभा में नेहरू को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने गरियाया और बाकी की कसर अमित शाह साहब ने पूरी कर दी। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि विपक्ष अमित शाह के पूरे भाषण को छिपा रहा है और एक छोटे हिस्से को काटकर गलत तरीके से फैला रहा है। चलिए मन लेते हैं की विपक्ष ही इस समूची हरकत के पीछे ह। लेकिन सरकार ये तो बताये की उसने दस साल छह महीने में अम्बेडकरवादियों के कयलन के लिए क्या किया ?
अमित शाह तो दरअसल पूरे वीडियो में ये कह रहे हैं की -अ 'हमें तो आनंद है कि अंबेडकर का नाम लेते हैं. अंबेडकर का नाम अभी 100 बार ज्यादा लो परंतु साथ अपने अंबेडकर जी के प्रति आपका भाव क्या है, ये मैं बताता हूं ? उन्होंने आँखें नचाकर अपने अंदाज में कहा की-अंबेडकर जी ने देश की पहली कैबिनेट से इस्तीफा क्यों दे दिया? अंबेडकर जी ने कई बार कहा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों से हुए व्यवहार से मैं असंतुष्ट हूं. सरकार की विदेश नीति से मैं असहमत हूं और आर्टिकल 370 से मैं असहमत हूं इसलिए मैं मंत्रिमंडल छोड़ना चाहता हूं. उन्हें आश्वासन दिया गया। आश्वासन पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने इग्नोरेंस के चलते इस्तीफा दे दिया.।' यानि अमित शाह साहब ये साबित करना चाहते थे की डॉ अम्बेडकर अजन्मी भाजपा और दिवागत हो चुकी जनसंघ के अलावा राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ की तरह पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के विरोधी थे।
अपनी लम्बी और कर्कश जबान की वजह से आलोचनाओं का शिकार हुए अमित शाह अब कहते फिर रहे हैं कि 'अंबेडकर जी के स्मारक तब बने जब भारतीय जनता पार्टी केंद्र में आई। मऊ में अंबेडकर जी के जन्म स्थान में स्मारक बना. लंदन में जहां अध्ययन करते थे वहां स्मारक बना, नागपुर में शिक्षा-दीक्षा ली वहां स्मारक बना, दिल्ली में महापरिनिर्वाण स्थल पर बना और मुंबई में चैत्य भूमि में भी बन रहा है। शाह साहब का दावा है की हमने पंचतीर्थ बनाए हैं। उन्होंने कहा की मान्यवर मैं मानता हूं कि अंबेडकर जी के सिद्धांतों पर चलना नहीं और वोट के लिए उनकी गुहार लगा देना. 14 अप्रैल को राष्ट्रीय समरसता दिवस घोषित किया हमने. 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया, उस वक्त भी इसका विरोध कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने किया.'।
डॉ अम्बेडकर ने जिस समाज के लिए लड़ाई लड़ी उस समाज के ऊपर देस्शभर की डबल इंजिन की सरकारों के क्षेत्रों में क़ानून और व्यवस्था के साथ ही दलित, पीड़ित और आदिवासियों के मुद्दों पर जिस तरीके से काम हो रहा है वो किसी से छिपा नहीं है। डॉ अंबेडकर को मानने वाले जानते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने डॉ अम्बेडकर के समर्थकों के लिए कितना किया और भाजपा ने कितना किया । संसद के शीत सत्र का हासिल इसी तरह के विवाद रहे है।संसद के इस सत्र का आगाज भी 25 नम्बंर को हंगामे के साथ हुआ था और समापन भी हंगामे के साथ ही हुआ है। दोनों का श्रेय सीधे-सीधे भारत की सरकार को दिया जा सकता है। देश कि अम्बेडकर वादियों को उतनी ही गंभीरता से अपने अंक से लगना चाहिए जो कि आमीन ,
@ राकेश अचल